कारगिल विजय दिवस: …और पिता अपने लाल के आगे नतमस्तक हो गए

कारगिल युद्ध को 22 वर्ष हो रहे हैं। 26 जुलाई को प्रति वर्ष देश अपने वीर सपूतों को स्मरण कर नतमस्तक होता है।

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कारगिल विजय दिवस के एक दिन पहले एक पिता अपने लाल को नमन करने वॉर मेमोरियल पहुंचे थे। इस पिता का नाम है एनके कालिया। जिनके 22 वर्षीय बेटे सौरभ कालिया ने मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी थी।

कैप्टन सौरभ कालिया और पांच सैनिकों को पाकिस्तानी सेना के लोगों ने 15 मई, 1999 को धोखे से पकड़ लिया था। इसके बाद पिता को मिला तो अपने लाल का क्षत-विक्षत शव। आंखों को क्षति पहुंचाई गई थी, कान में घाव थे और शरीर के संवेदनशील अंगो को काट दिया गया था। वीर पुत्र के पार्थिव की यह दशा देखकर पिता का हृदय आक्रोशित हो उठा था।

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काउंसिल फॉर साइन्टिफिक एण्ड इंडस्ट्रियल रिसर्च में वैज्ञानिक रहे एनके कालिया ने युद्ध के दौरान होनेवाले अपराधों के लिए लड़ने का दृढ़ निश्चय किया। उन्होंने 2012 में सर्वोच्च न्यायालय में रिट दायर की, जिससे केंद्र सरकार को पाकिस्तान के अपराध के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाने का आदेश दिला सकें। इसका परिणाम आया और 2015 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में यह प्रकरण पहुंचा और तभी से यह लंबित पड़ा हुआ है।

परमाणु शक्तियों के बीच पहला युद्ध
भारत और पाकिस्तान परमाणु शक्तियों से लैस थे। कारगिल का युद्ध परमाणु आयुध युक्त होने के बाद दोनों देशों के बीच पहला युद्ध था। इसके पीछे पाकिस्तान का बहुत बड़ा षड्ंयत्र था। इसका भंडाफोड़ हुआ था 2 मई, 1999 को। कारगिल के बटालिक शहर के पास घरकोन नामक एक छोटे से गाँव में रहने वाले एक स्थानीय चरवाहे ताशी नामग्याल ने छह लोगों को पत्थर तोड़ते और बर्फ साफ करते हुए देखा। ताशी के लिए यह असामान्य था क्योंकि, उसे पहाड़ों तक पहुंचने के लिए कोई निशान नहीं दिखे थे। जिसका कारण स्पष्ट था कि वह निशान पाकिस्तान की ओर से रहे होंगे।

पहाड़ी पर बर्फ हटा रहे वे लोग पठानी और सेना की वर्दी में थे। उनमें से कुछ के पास हथियार भी थे। ताशी ने इसकी सूचना तत्काल सेना को दी, जिसके बाद क्षेत्र के निरिक्षण के लिए सेना का एक दल रवाना किया गया। भारतीय सेना के दल ने जो देखा वह अचंभित करनेवाला था। इसके बाद भारतीय सेना ने आकाश और जमीन से घुसपैठिये पाकिस्तानियों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। यह युद्ध दो महीने तक चला, कारगिल विजय की बहुत बड़ी कीमत देश ने दी है। इस युद्ध में भारत के 527 सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी और आधिकारिक रूप से 26 जुलाई को यह युद्ध समाप्त हुआ।

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