चीन को जवाब देने के लिए एलएसी के पास भारत की ‘इस’ एयरबेस को अपग्रेड करने की तैयारी

वायु सेना का एयरबेस चीन सीमा पर एलएसी के सबसे नजदीक होने के कारण रणनीतिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील होने के साथ ही महत्वपूर्ण भी है।

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वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के दूसरी तरफ चीनी बुनियादी ढांचे का मुकाबला करने के लिए भारत लद्दाख में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर न्योमा एयरबेस को तेजस, मिराज-2000 जैसे फाइटर जेट्स के लिए अपग्रेड करने जा रहा है। लड़ाकू विमानों के लिए सक्षम एलएसी से महज 50 किमी. दूर न्योमा एयरफील्ड के लिए भारत ने टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी है। वायु सेना यहां से लड़ाकू विमानों का संचालन कर सकेगी, जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में दुश्मनों के किसी भी दुस्साहस से निपटने की क्षमता और मजबूत होगी।

यह अपग्रेडेड एडवांस लैंडिंग ग्राउंड दो साल में लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए तैयार हो जाएगा। बोली दस्तावेज के अनुसार परियोजना पर लगभग 214 करोड़ रुपये खर्च होंगे। नए एडवांस लैंडिंग ग्राउंड के लिए साइट 1,235 एकड़ में फैली होगी, जहां संबद्ध सैन्य बुनियादी ढांचे के साथ 2.7 किलोमीटर का रनवे बनेगा। सीमा सड़क संगठन ने काम को अंजाम देने के लिए ठेकेदारों की मांग करते हुए बोली आमंत्रित की है। रनवे का एलाइनमेंट ऐसा होगा कि विमान दोनों दिशाओं में लैंड कर सके और इसकी चौड़ाई 45 मीटर से अधिक होगी। नए रनवे का स्थान लेह-लोमा रोड के पास होगा, जिससे इस संवेदनशील क्षेत्र में सैनिकों और सैन्य सामग्री की त्वरित आवाजाही होगी।

इस कारण बहुत ही संवेदनशील है ये एयरबेस
वायु सेना का यह एयरबेस चीन सीमा पर एलएसी के सबसे नजदीक होने के कारण रणनीतिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील होने के साथ ही महत्वपूर्ण भी है। पूर्वी लद्दाख सीमा के पास 18 सितंबर, 2009 को शिलान्यास किये गए न्योमा एयरफील्ड को अपग्रेड करने का फैसला चीनी बुनियादी ढांचे की विकास गतिविधियों के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। चीन सीमा से 50 किमी. से कम दूरी पर न्योमा एयरबेस अपग्रेड होने के बाद क्षेत्र में लड़ाकू और प्रमुख परिवहन विमानों के संचालन करने में आसानी होगी। इस हवाई क्षेत्र से चीन के किसी भी दुस्साहस पर तुरंत प्रतिक्रिया देने में सहूलियत होगी।

इन लड़ाकू विमानों का किया जाएगा संचालन
न्योमा एयरबेस के मुख्य संचालन अधिकारी ने कहा कि चीन के साथ गतिरोध शुरू होने के बाद से न्योमा उन्नत लैंडिंग ग्राउंड से अपाचे हेलीकॉप्टर, चिनूक हैवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर, एमआई-17 हेलीकॉप्टर और सी-130जे स्पेशल ऑपरेशंस एयरक्राफ्ट का संचालन होता है। न्योमा हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल सैनिकों और सैन्य सामग्री की आपूर्ति के लिए किया गया है। चिनूक और अपाचे हेलीकॉप्टरों ने चीन सीमा पर तैनात सैनिकों को रसद पहुंचाने के लिए नॉन-स्टॉप काम किया है। अपग्रेड होने के बाद यहां से तेजस, मिराज-2000 जैसे फाइटर जेट्स उड़ान भर सकेंगे, जिससे न्योमा में हवाई संचालन क्षमता बढ़ेगी। साथ ही न्योमा एएलजी और लेह के बीच 180 किलोमीटर की दूरी घटने से पूर्वी लद्दाख में सैनिकों और सैन्य सामानों को पहुंचाने में आसानी होगी।

अधिकारी ने दी जानकारी
एक रक्षा अधिकारी ने बताया कि एएलजी (उन्नत लैंडिंग ग्राउंड) को जल्द ही लड़ाकू विमानों के संचालन के लिए अपग्रेड किया जा रहा है, क्योंकि अधिकांश आवश्यक मंजूरी और अनुमोदन पहले ही आ चुके हैं। केंद्र की मंजूरी मिलने के बाद नए हवाई क्षेत्र और सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण सीमा सड़क संगठन करेगा। इसके अलावा भारत एलएसी से कुछ ही मिनटों की दूरी पर पूर्वी लद्दाख में दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और फुकचे में भी हवाई क्षेत्र विकसित करने के लिए कई विकल्पों पर विचार कर रहा है।

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