9 साल बाद कर दिया ‘दृष्टि’हीन!

1979 में स्थापना और 1990 अपहरण, हत्या, सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देनेवाले उल्फा विद्रोही संगठन के आई समूह को बड़ा झटका लगा है। इसके डिप्टी कमांडर दृष्टि राजखोवा को मिलिट्री इंटेलिजेंस ने गिरफ्तार कर लिया है।

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मिलिट्री इंटेलिजेंस अधिकारी की नई जगहों पर पोस्टिंग हुई, इस बीच 9 साल का समय बीत गया लेकिन उन्होंने अपने टारगेट को नहीं छोड़ा। इसका परिणाम आया कि प्रतिबंधित आतंकी समूह उल्फा (आई) के डिप्टी कमांडर ने अपने चार साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। इस गिरफ्तारी ने उल्फा को दृष्टिहीन कर दिया है।

1979 में स्थापना और 1990 से अपहरण, हत्या, सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देनेवाले उल्फा विद्रोही संगठन के आई समूह को बड़ा झटका लगा है। इसके डिप्टी कमांडर दृष्टि राजखोवा को मिलिट्री इंटेलिजेंस ने गिरफ्तार कर लिया है।

लंबी चली बात, विवाद और घात

उल्फा के डिप्टी कमांडर दृष्टि राजखोवा के आत्मसमर्पण के पीछे 9 साल की कड़ी मेहनत है। इसे 2011 में सेना के एक कैप्टन रैंक के अधिकारी ने शुरू की थी। इन वर्षों में ये अधिकारी राजखोवा को यह समझाता रहा कि विद्रोह, आतंक क्षेत्र की जनता के विकास में हानिकारक है। इन वर्षों में इस अधिकारी के कई स्थानांतरण हुए। इधर राजखोवा का नाम कई आतंकी गतिविधियों से जुड़ता रहा। उसके नेतृत्व में अपहरण, हत्या जैसी घटनाएं लगातार घटती रही। लेकिन मिलिट्री इंटेलिजेंस के अधिकारी ने अपनी कोशिश को विराम नहीं दिया। अधिकारी के समझाने पर बड़ी मुश्किल से दृष्टि राजखोवा ने आत्मसमर्पण के लिए सहमति दी।

मठभेड़ों में बंच निकला…

राजखोवा कई बार सुरक्षाबलों के साथ हुई मुठभेड़ में बच गया था। 20 अक्टूबर 2020 को भी वो एक एनकाउंटर में बच निकलने में सफल हुआ था। राजखोवा एक आरपीजी एक्सपर्ट है जिसे उल्फा कमांडर इन चीफ परेश बरुआ ने 2011 में डिप्टी कमांडर इन चीफ बनाया था। उसने पूर्वोत्तर में कई हमलों को अंजाम दिया और पूर्वोत्तर के राज्यों तथा बांग्लादेश में गन रनिंग का मास्टरमाइंड माना जाता है और वहां सक्रिय उग्रवादी संगठनों को हथियार मुहैया कराता रहा है।

…और बन गई योजना

मिलिट्री इंटेलिजेंस के अधिकारी ने जैसे ही राजखोवा के आत्मसमर्पण की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी। दिल्ली में इसके लिए मिलिट्री ने योजना तैयारी की। मिलि

ट्री इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जनरल के नेतृत्व में इस ऑपरेशन को परिणाम तक पहुंचाया गया। यह ऑपरेशन 11 नवंबर की रात शुरू हुआ था। जिसके तहत रात 2 बजे दृष्टि राजखोवा उर्फ मेजर राभा ने अपने चार बॉडीगार्ड के साथ रेड हॉर्न डिवीजन के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

ऐसे अस्तित्व में आया उल्फा…

  • पूर्वोत्तर भारत का दुर्दांत आतंकी संगठन है उल्फा
  • इसका पूरा नाम यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम
  • असम में सक्रिय है ये आतंकवादी और उग्रवादी संगठन
  • सशस्त्र संघर्ष के जरिए असम को एक स्वतंत्र देश (स्टेट) बनाना चाहता है।
  • वर्ष 1990 से प्रतिबंधित है। केन्द्र सरकार ने ‘आतंकवादी संगठन’ के रूप में वर्गीकृत किया है।
  • भीमकांत बुरागोहेन, राजीव राजकोन्वर उर्फ अरबिंद राजखोवा, गोलाप बारुआ उर्फ अनूप चेतिया, समिरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई, भद्रेश्वर गोहेन और परेश बरुआ ने अप्रैल, 1979 असम में सिबसागर जिले के रंगघर में उल्फा की स्थापना की थी।
  • वर्ष 1986 में उल्फा का संपर्क नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-पूर्व में अविभाजित) से हुआ था।
  • यह असम और उससे लगे राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश में सक्रिय है
  • वर्ष 1990 के बाद उल्फा ने कई हिंसक वारदातों को अंजाम देना शुरू दिया था।
  • अमेरिकी गृह मंत्रालय ने अन्य संबंधित आंतकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर लिया है।
  • संगठन के प्रमुख नेता परेश बरुआ (कमांडर-इन-चीफ), अरबिंद राजखोवा (चेयरमैन), अनूप चेतिया (जनरल सेक्रेटरी), प्रदीप गोगोई (वाइस चेयरमैन) खुद को राजनीतिक व क्रांतिकारी संगठन से जुड़े लोग मानते हैं।
  • कुछ समय पहले बांग्लादेश सरकार ने चेतिया को भारत के हवाले किया है।
  • भारतीय सेना ने इसके खिलाफ ऑपरेशन बजरंग शुरू किया था।
  • सूत्रों के अनुसार इस संगठन को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आईएसआई) और बांग्लादेशी खुफिया एजेंसी (डीजीएफआई) से मदद मिलती है।
  • संगठन को चीन सरकार से भी मदद मिलती है।
  • उल्फा वामपंथी विचारधारा को मानने वाला संगठन है और उसका संबंध माओवादियों से भी है।

अपहरण और हत्याओं से सने हैं हाथ

  • संगठन ने 1990 में अनिवासी ब्रिटिश व्यवसायी लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई सुरेंद्र पॉल की हत्या कर दी थी।
  • 1991 में एक रूसी इंजीनियर का अपहरण किए जाने के बाद उसकी हत्या भी कर दी गई थी।
  • 1997 में इसने अन्य लोगों के साथ एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ भारतीय कूटनीतिज्ञ का अपहरण कर हत्या कर दी।
  • वर्ष 2003 में असम में कार्यरत 15 बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी गई थी, जिनमें बच्चे भी शामिल थे।
  • जनवरी 2007 में, 62 हिंदी भाषी विशेषकर बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी गई थी।

 

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