न्योमा एयरबेस का अपग्रेडेशन शुरू, इसलिए है ये खास

लेह और थोइस के अलावा लद्दाख में लड़ाकू विमानों के लिए एक वैकल्पिक ऑपरेटिंग बेस की जरूरत महसूस की गई, क्योंकि मौसम की स्थिति ने इन दोनों अड्डों की परिचालन क्षमता को प्रभावित किया था।

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चीन सीमा से 50 किमी. से कम दूरी पर भारत ने लद्दाख के हवाई क्षेत्र को अपग्रेड करना शुरू कर दिया है। इसके लिए न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) पर लड़ाकू अभियानों के लिए 2.7 किमी लंबा कंक्रीट रनवे बनाया जा रहा है। यह 13,700 फीट की ऊंचाई पर चीन की नजरों से दूर दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र होगा। यह एयरबेस चीन सीमा पर एलएसी के सबसे नजदीक होने के कारण रणनीतिक रूप से सबसे ज्यादा संवेदनशील होने के साथ ही महत्वपूर्ण भी है।

18 सितंबर 2009 को हुआ था शिलान्यास
पूर्वी लद्दाख सीमा के पास 18 सितंबर 2009 को शिलान्यास किये गए न्योमा एयरफील्ड को अपग्रेड करने का फैसला चीनी बुनियादी ढांचे की विकास गतिविधियों के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। रक्षा मंत्रालय के आदेश पर बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लड़ाकू जेट संचालन की सुविधा के लिए पूर्वी लद्दाख के न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड को अपग्रेड करने का निर्माण कार्य शुरू किया है। यहां बुनियादी ढांचे के साथ 2.7 किमी का कंक्रीट रनवे बनाया जाना है, जो 20 महीने से भी कम समय में पूरा हो जाएगा। कंक्रीट रनवे बनने के बाद यहां से लड़ाकू विमान उड़ान भर सकेंगे।

भारी परिवहन विमान भी हो सकेंगे संचालित
न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड का मौजूदा रनवे वास्तव में मिट्टी से बना है, जहां केवल सी-130जे जैसे विशेष परिवहन विमानों और हेलीकॉप्टरों को उतारा जा सकता है। कंक्रीट का नया रनवे बन जाने पर न्योमा से भारी परिवहन विमान भी संचालित हो सकेंगे, जो भारतीय वायु सेना की रणनीतिक गहराई में इजाफा करेगा। सूत्रों ने यह भी कहा कि 13,700 फीट पर स्थित न्योमा एएलजी दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र होगा, इसलिए लड़ाकू इंजनों को इतनी ऊंचाई से संचालित करने में सक्षम बनाने के लिए बदलाव किया जा रहा है। चीन सीमा से 50 किमी. से कम दूरी पर न्योमा एयरबेस अपग्रेड होने के बाद क्षेत्र में लड़ाकू और प्रमुख परिवहन विमानों के संचालन करने में आसानी होगी।

वैकल्पिक ऑपरेटिंग बेस की थी जरूरत
दरअसल, लेह और थोइस के अलावा लद्दाख में लड़ाकू विमानों के लिए एक वैकल्पिक ऑपरेटिंग बेस की जरूरत महसूस की गई, क्योंकि मौसम की स्थिति ने इन दोनों अड्डों की परिचालन क्षमता को प्रभावित किया था। इसके लिए भारतीय वायु सेना ने लद्दाख में स्थित दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ), न्योमा और फुकचे का अध्ययन किया, ताकि यह समझा जा सके कि इनमें से किसका इस्तेमाल लड़ाकू अभियानों के लिए किया जा सकता है। फिलहाल 16,600 फीट की ऊंचाई पर दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई युद्ध क्षेत्र होने के बावजूद डीबीओ इसलिए बेहतर नहीं माना गया, क्योंकि यह होने से चीनियों की दृश्य परिधि के भीतर है।

न्योमा को इसलिए चुना गया
दूसरी तरफ, फुकचे में रनवे का विस्तार करने और अतिरिक्त बुनियादी ढांचे के निर्माण की क्षमता सीमित थी, इसलिए पलड़ा न्योमा के पक्ष में झुक गया। न्योमा का पक्ष उसके मौसम ने भी मजबूत किया, जो पूरे वर्ष में अधिकतर चालू रहता है। हालांकि, यहां चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य के चलते पर्यावरणीय मंजूरी से संबंधित एक समस्या सामने आई, क्योंकि यह किआंग या तिब्बती जंगली गधे और दुर्लभ काली गर्दन वाले क्रेन का घर है। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने पर्यावरण मंजूरी हासिल करने के लिए विस्तार योजनाओं पर फिर से काम किया, जो कुछ शर्तों के साथ पूरी होने पर न्योमा एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड के अपग्रेड होने का रास्ता साफ हो गया।

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