बड़े मॉल्स, शोरुम में सेल्समैन को बैठने के लिए जगह नहीं होती। वे दिन भर खड़े रहकर अपना काम करते हैं। इस स्थिति में तमिलनाडु ने कानून में संशोधन कर दुकानों में काम करने वाले लोगों को बैठने का अधिकार यानी राइट टु सिट दिया है। इसके बाद इस बारे में पूरे देश में चर्चा गरम हो गई है। राइट टु सिट दुकानों में काम करने वाले सेल्समैन को बैठने की जगह देने की वकालत करता है।
इससे पहले केरल सरकार ने भी कानून में संशोधन कर दुकानों में काम करने वालों को राइट टु सिट का अधिकार दिलाया था। लेकिन अब यह मुद्दा पूरे देश में काफी गरम हो गया है। दुकानों में काम करन वालों के साथ ही अन्य कई ऐसी नौकरियां हैं, जहां काम करने वालों को घंटों खड़े रहना पड़ता है। इससे उनके शारीरिक और मानसिक सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। तमिलनाडु सरकार ने जो कानून बनाया है, उसके पीछे ऐसे लोगों का स्वास्थ्य प्रमुख कारण है।
संविधान में है यह अधिकार
कानून में यह बात स्पष्ट की गई है कि यह जरुरी नहीं है कि दुकानों में हर व्यक्ति हर समय बैठकर ही काम करे, लेकिन बीच-बीच में हर किसी के बैठने की व्यवस्था जरुरी है ताकि काम के दौरान अवसर मिलने पर वह वहां बैठ सके। संविधान के अनुच्छेद 42 में इस बात का जिक्र किया गया है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि राज्य काम की उचित मानवीय स्थितियां सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान करें। इसके साथ ही अनुच्छेद 21 में मिले जीवन के अधिकार में गरिमापूर्ण ढंग से जीवन जीने का सभी को हक है।
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क्या कहते हैं विषेषज्ञ?
राइट टू सीट पर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार को इस बारे में गाइडलाइन तैयार करना चाहिए। उनका मानना है कि सभी स्टेक होल्डर्स से विचार-विमर्श करके इस पर नीति निर्धारण की आवश्यकता है। राज्यों को इस पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि उनका मानना है कि इसमें वर्गीकरण करना जरुरी हो सकता है, क्योंकि हर स्थान पर हालात सामान नहीं होते ।