सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 23 अगस्त को अनुच्छेद 370 को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं पर नौवें दिन की सुनवाई पूरी कर ली। याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें पूरी कर ली गईं। सर्वोच्च न्यायालय 24 अगस्त से इस मामले पर सरकार और अनुच्छेद 370 निरस्त करने का समर्थन करने वाले याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि 28 अगस्त को भी संविधान बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।
विरोध में दी गई दलील
23 अगस्त की सुनवाई के दौरान वकील नित्या रामकृष्णन ने दलील देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 लोकतांत्रिक लोगों की इच्छा, जो कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा और भारत के लोगों की इच्छा के एक साथ आने की ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि को भी दिखाता है और पहचानता है। यह साझा संप्रभुता वास्तव में संतुलन की एक व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा अनुच्छेद 370 के हर हिस्से में व्याप्त है। मैं इस विचार का समर्थन नहीं करती कि पूरा अनुच्छेद समाप्त हो गया है। 370(1) अभी भी जीवित है। नित्या ने कहा कि एक राज्यपाल, जिसे मंत्रिपरिषद द्वारा सलाह नहीं दी गई, उसे 370 से मान्यता प्राप्त नहीं है। इसलिए राष्ट्रपति शासन के दौरान जारी कोई भी आदेश उचित नहीं है।
अनुच्छेद 370 अस्थायी की बात झूठ
नित्या रामकृष्ण ने कहा कि मौखिक या अघोषित धारणा यह है कि अनुच्छेद 370 अस्थायी है। यह एक एकीकरण के लिए झूठ बोला जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह दृष्टिकोण भ्रामक है। नित्या ने कहा कि एकीकरण इस बात का पैमाना नहीं है कि केंद्र का कितना नियंत्रण है। यह केंद्रीय नियंत्रण या शक्ति का कार्य नहीं है। यह कहना गलत होगा कि केंद्रशासित प्रदेशों के लोग छठी अनुसूची क्षेत्र के लोगों की तुलना में अधिक एकीकृत हैं। नित्या रामकृष्ण ने कहा अनुच्छेद 370 शासन के तरीके को मान्यता देता है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के लोगों की साझा संप्रभुता, उनकी लोकतांत्रिक इच्छा का विलय भारत के साथ है। इस अर्थ में यह एक लोकतांत्रिक समझौता हुआ है, जो 370 का हिस्सा है।
केंद्र सरकार का स्पष्टीकरण
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उस बयान को रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें कहा गया कि पूर्वोत्तर समेत अन्य 12 राज्य जहां के लिए विशेष प्रावधान है, उनको नहीं छुआ जाएगा। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बयान दिया कि उसका पूर्वोत्तर राज्यों से संबंधित किसी विशेष प्रावधान को छूने का कोई इरादा नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों से संबंधित विशेष प्रावधानों के मामले में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मामले से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वो इस चर्चा का विरोध करती है।
मेहता ने यह बात तब कहीं जब एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मनीष तिवारी ने कहा था कि अनुच्छेद 370 के साथ कोर्ट जो निर्णय करेगा, इसका असर अनुच्छेद 371 के तहत आने वाले राज्यों पर भी पड़ेगा।
पांच सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि 2 मार्च, 2020 के बाद इस मामले को पहली बार सुनवाई के लिए लिस्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि धारा 370 को हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य की सभी विधानसभा सीटों के लिए एक परिसीमन आयोग बनाया है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए भी भूमि खरीदने की अनुमति देने के लिए जम्मू एंड कश्मीर डेवलपमेंट एक्ट में संशोधन किया गया है। याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर महिला आयोग, जम्मू-कश्मीर अकाउंटेबिलिटी कमीशन, राज्य उपभोक्ता आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को बंद कर दिया गया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च, 2020 को अपने आदेश में कहा था कि इस मामले पर सुनवाई पांच जजों की बेंच ही करेगी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के समक्ष भेजने की मांग को खारिज कर दिया था।
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