राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के एक अहम फैसले से खाताधारकों का टेंशन काफी कम हो गया है। आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि हैकर्स या किसी अन्य कारणों से खाताधारक के खाते से अगर पैसे निकलते हैं या उनके साथ धोखाधड़ी की जाती है तो यह ग्राहक की लापरवाही नहीं, बल्कि इसके लिए बैंक प्रबंधन जिम्मेदार है। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इसी तरह के एक मामले में बैंक के खाते से हैकर्स द्व्रारा पैसे निकाले जाने के मामले में पैसे के साथ ही केस के खर्च और मानसिक प्रताड़ना झेलने के बदले में भी पैसे देने का फैसला सुनाया है।
बैंक प्रबंधन को ठहराया जिम्मेदार
20 जुलाई 2020 को मोदी सरकार ने एक नया कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया था। इस एक्ट के लागू होने के बाद से देश में इस तरह का यह पहला मामला है। इसमें राष्ट्रीय उपभोक्या आयोग ने बैंक प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है।
विवाद निवारण आयोग के जज सी विश्वनाथ ने क्रेडिट कार्ड की हैकिंग की वजह से एक एकएआरआई महिला के साथ हुई धोखाधड़ी के मामले में बैंक को जिम्मेदार ठहराया । उन्होंने एचडीएफसी बैंक द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए आदेश जारी किया कि वह पीड़िता को 6 हजार 110 डॉलर यानी लगभग 4.46 लाख रुपए 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस लौटाए।
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मानसिक प्रताड़ना के साथ केस खर्च भी देने का आदेश
उपभोक्ता विवाद आयोग ने इसके साथ ही पीड़िता को मानसिक मुआवजे के तौर पर 40 हजार और केस खर्च के 5 हजार रुपए देने का भी आदेश दिया है। बैंक इस मामले में ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया, जिसमें पीड़िता का क्रेडिट कार्ड किसी अन्य ने चोरी कर ली थी। दूसरी ओर महिला ने दावा किया कि उसके खाते से पैसे किसी हैकर ने निकाले हैं और बैंक के इलेक्ट्रोनिक बैंकिंग सिस्टम में खामी है।
खाते की सुरक्षा की जिम्मेदारी बैंक की
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने यह भी कहा कि आज के डिजिटल युग में क्रेडिट कार्ड की हैकिग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में ग्राहकों के खाते की सुरक्षा के लिए बैंक प्रबंधन जिम्मेदार है।