Bhagavad Gita: यम एवं नियम; आध्यात्मिक अनुशासन-विजय सिंगल

जबकि यमों में कुछ गतिविधियों को बताया गया है जिनसे मनुष्य को सदा बचना चाहिए, और नियमों में कुछ मर्यादाएँ निर्धारित की गई हैं जिनका पालन करना आवश्यक है।

234

Bhagavad Gita: प्राचीन ऋषि पातंजलि ने अपने योग सूत्रों में, योग (अष्टांग योग) के आठ अंग बताए हैं, जिनके निष्ठापूर्वक अभ्यास से शरीर और मन की अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं; और आत्मा का ज्ञान प्रकट हो जाता हैं। योग के ये अंग हैं यम (बुरे कर्मों से बचना) नियम (अच्छे व्यवहार का पालन), आसन (बैठने की मुद्रा), प्राणायाम (श्वास का नियमन), प्रत्याहार (इन्द्रियों का उनके विषयों से निग्रह), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (स्वयं के स्वरूप का ध्यान); एवं समाधि (चेतना का आत्मा में विलय)।

मुक्ति के इस अष्टांगिक मार्ग के पहले दो घटकों अर्थात् यमों एवं नियमों का वर्णन सूत्र संख्या 2.30 से लेकर 2.45 तक में किया गया है। जबकि यमों में कुछ गतिविधियों को बताया गया है जिनसे मनुष्य को सदा बचना चाहिए, और नियमों में कुछ मर्यादाएँ निर्धारित की गई हैं जिनका पालन करना आवश्यक है।

यह भी पढ़ें- Kunal Kamra: विवाद के बाद यूनिकॉन्टिनेंटल स्टूडियो पर BMC ने की यह कार्रवाई, यहां जानें

सिद्धांतों को स्थापित
दोनों (यमों एवं नियमों) ने मिलकर नैतिकता के ऐसे सिद्धांतों को स्थापित किया है, जिनके अनुसरण से व्यक्ति आध्यात्मिक पूर्णता के मार्ग पर आगे की यात्रा के लिए स्वयं को तैयार कर सकता है। अहिंसा (हिंसा का त्याग), सत्य (झूठ से दूर रहना), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (विषय वासना से इन्द्रियों का निग्रह) तथा अपरिग्रह (अपनी आवश्यकता से अधिक सामग्री का संग्रह न करना) ये पाँच संयम (यम) हैं। उपर्युक्त नैतिक सिद्धांतों को महान सार्वभौमिक व्रत कहा गया है; और आत्म-साक्षात्कार के इच्छुक व्यक्ति से हर परिस्थिति में इन दोषों से दूर रहने का आग्रह किया गया है।

यह भी पढ़ें- IPL 2025: जोफ्रा आर्चर ने SRH के खिलाफ बनाया यह अनचाहा रिकॉर्ड, यहां जानें

नियमों का पालन जरूरी
जिन आचार-व्यवहारों (नियमों) का पालन जरूरी बताया गया है वे हैं शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्राणिधान। शौच का तात्पर्य शरीर और मन की स्वच्छता से है। द्वेष, भय, अहंकार और ईर्ष्या आदि से मुक्त होने पर मन को स्वच्छ कहा जाता है। एक मुक्त मन ही प्रसन्न मन होता है। संतोष तृप्ति की अवस्था को दर्शाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति जान जाता है कि वासना के विषयों से प्राप्त सुख क्षणिक तथा भंगुर है। इसलिए वो सांसारिक वस्तुओं के पीछे नहीं भागता, और जो कुछ भी उसको प्राप्त होता है, वो उसी में संतुष्ट रहता है।

यह भी पढ़ें- Kunal Kamra: हैबिटेट में तोड़फोड़ के बाद स्टूडियो ने उठाया यह कदम, यहां जानें

पवित्र धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन
जीवन के प्रति संतोष का भाव विकसित करके मनुष्य उस परम आनन्द का अनुभव कर सकता है जोकि स्वयं में निहित है। तप से आशय है संयम अर्थात् इन्द्रियों को वश में रखना। आत्म-अनुशासन से शरीर स्वस्थ बनता है; और दृष्टि, श्रवण आदि इन्द्रियों की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है। स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है स्वयं का अध्ययन। यह पवित्र धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन को भी इंगित करता है। ये दोनों अर्थ परस्पर विरोधी नहीं हैं क्योंकि धार्मिक ग्रन्थ भी आत्म का ही ज्ञान प्रदान करते हैं। ईश्वर-प्राणिधान का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण और बिना शर्त समर्पण। सच्चे प्रेम और अनन्य भक्ति के द्वारा व्यक्ति सर्वोच्च शक्ति को उसी रूप में प्राप्त कर लेता है, जिस रूप में वह उसकी पूजा करता है।

यह भी पढ़ें- Kunal Kamra: कुणाल कामरा मामले पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पहली प्रतिक्रिया, जानें क्या बोले

मनुष्य का मार्गदर्शन
यम व नियम नैतिकता के वे पाठ हैं जो मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं और बताते हैं कि विभिन्न परिस्थितियों में क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं। ये मूल्य-प्रणालियाँ व्यक्ति के सामाजिक व्यवहार तथा आध्यात्मिक अभ्यास की दृढ़ नींव रखती हैं। मन, वचन और कर्म से जब इन सिद्धांतों का पालन किया जाता है. तब आत्म-साक्षात्कार के मार्ग की सब बाधाएँ दूर हो जाती हैं और व्यक्ति अंतरतम चेतना को समझने के योग्य हो जाता है। इन मूल्यों में दृढ़ता से स्थापित होने पर मनुष्य भौतिक सम्पन्नता एवं आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त कर लेता है।

यह भी पढ़ें- Muslim Reservation: मुस्लिम आरक्षण पर ऐसा क्या हुआ की 2 बजे तक स्थगित करना पड़ा संसद, यहां जानें

आत्म-ज्ञान के नैतिक साधन
आत्म-ज्ञान के नैतिक साधन होने के कारण, यमों और नियमों को अनैतिक तरीकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। पातंजलि ने बताया है कि हिंसा तथा असत्य जैसे बुरे कर्म, जो आध्यात्मिक विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं: लोभ, क्रोध अथवा भ्रम के कारण पैदा होते हैं। किसी भी रूप में और किसी भी मात्रा में किए गए इन कर्मों का अंतिम परिणाम निरन्तर दुख ही होता है। इसलिए मनुष्य को ऐसे कर्मों के दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए सदा उनसे बचना चाहिए।

यह भी पढ़ें- IPL 2025: पहले मैच में शून्य पर आउट हुए रोहित, अपने नाम किया यह अनचाहा रिकॉर्ड

कष्टदायक विचार
आध्यात्मिक विकास के पथ पर, एक आकांक्षी को नकारात्मक विचारों के रूप का सामना करना पड़ता है। इस तरह के विचार स्वयं की अवचेतन गहराई में सुषुप्त ५. ओं के 40/104 कारण उत्पन्न होते हैं। इन योग सूत्रों में यह समझाया गया है कि इस तरह के कष्टदायक विचारों के उभरने पर निराश नहीं होना चाहिए। जरूरत है अप्रिय विचारों का मुकाबला सचेत रूप से करने की। जैसे ही व्यक्ति अपने विद्वेषपूर्ण विचारों के दुष्चक्र के प्रति जागरूक हो, उसे सद्भावनापूर्ण विचारों का आह्वान करके अप्रिय विचारों को समाप्त करने का सचेत प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए किसी के प्रति नफरत का प्रतिकार उसके प्रति प्रेम जगाकर किया जा सकता है।

यह भी पढ़ें- Yashwant Verma: दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश, जस्टिस यशवंत वर्मा से वापस लिया गया न्यायिक कार्य

आध्यात्मिक अनुशासन की व्यावहारिकता
ऐसे कठोर आध्यात्मिक अनुशासन की व्यावहारिकता पर अकसर संदेह व्यक्त किया जाता है। यद्धपि सामान्य जीवन में इन सिद्धांतों का पालन कठिन प्रतीत होता है. वास्तव में ऐसा नहीं है। दैनिक व्यवहार में यह सिद्धांत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह उन दीयों की तरह हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के पथ को रोशन करते हैं। इनका प्रकाश व्यक्ति को बार-बार होने वाले प्रलोभनों के चंगुल और अनावश्यक भय एवं अवांछित संशयों से बचाता है। यमों और नियमों का जो कोई भी जितना अधिक पालन करता है, उसे उतना ही अधिक लाभ होता है।

यह भी पढ़ें- IPL 2025: रचिन रवींद्र ने चेन्नई में एमएस धोनी के प्रशंसकों का जुनून देखा, जानिए क्या कहा

इन्द्रियाँ स्वयं ही नियंत्रण
जब यमों और नियमों को आत्मसात कर लिया जाता है और स्वेच्छा से उनका पालन किया जाता है, तब इन्द्रियाँ स्वयं ही नियंत्रण में आने लगती हैं। और मन की अशुद्धियां धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। इस प्रकार शुद्ध हुआ मन आत्मा के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करने में सक्षम हो जाता है। तब सहज और स्वाभाविक रूप से अधिक सकारात्मक विचार उभरने लगते हैं; और मनुष्य का व्यक्तित्व बेहतरी की ओर रूपांतरित होने लगता है। जब व्यक्ति आध्यात्मिक अनुशासन में सिद्ध हो जाता है, तब वह इस नाश्वान संसार में आत्मज्ञान के प्रकाश में जीवन व्यतीत करता है।

यह वीडियो भी देखें-

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.