सावन माह का 16 दिन बीत चुका है, लेकिन मौसम किसानों पर मेहरबान नहीं हो रहा है। किसान अपने खेतों में पानी के लिए पानी-पानी हो रहे हैं। जुलाई में 250 एमएम से अधिक बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक करीब 125 एमएम बारिश ही हो सकी है, जिसके कारण बेगूसराय में मात्र 30 प्रतिशत धान की रोपाई हो सकी है। निजी तरीके से पंपसेट से पटवन में होने वाले अधिक खर्च के मद्देनजर आज से डीजल अनुदान के लिए आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
अनियमित मानसून के कारण उत्पन्न स्थिति के मद्देनजर किसानों से धान का बिचड़ा और फसल को लेकर कृषि विभाग ने एडवाइजरी जारी किया है। जिसमें किसानों से अपील किया गया है कि धान के बिचड़ा को बचाएं। जिन किसानों द्वारा बीज स्थल में बीज गिराया जा चुका है, वे जीवन रक्षक सिंचाई देकर बिचड़ा को बचाएं। धान के बीज स्थल की नियमित रूप से सिंचाई करते रहें, उसमें दरार नहीं पड़ने दें। अधिक दिन के बिचड़ा को कम दूरी पर लगाएं, 45-50 दिनों का बिचड़ा का रोपण दूरी को कम करते हुए दस सेमी से दस सेमी दूरी पर चार-पांच बिचड़े का प्रयोग करते हुए रोपनी करें। बिचड़ा आठ से नौ इंच का रखें तथा शेष शीर्ष भाग को काटकर हल्की गहराई तक रोपनी करें।
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धान की खड़ी फसल वाले खेत की निकौनी करें, खुरपी अथवा छोटे यंत्र का उपयोग कर निकौनी करें। विकल्प के रूप में खरपतवार नियंत्रण के लिए बीसपाईरीबेक सोडियम 250 मी.ली. और पाईरीजोसलफयूरॉन 200 ग्राम का घोल बनाकर प्रति हेक्टयर छिड़काव करें। इसके अलावा साइहेलोफॉपब्युटाईल 10 प्रतिश्त ई.सी. (750-800 मिली मात्रा) प्रति हेक्टेयर को पांच सौ लीटर पानी में घोलकर बोआई के 15-20 दिनों बाद छिड़काव करें। वर्षा होने पर कम अवधि के धान की बुआई करें, जिन किसानों के द्वारा अभी तक धान का बिचड़ा नहीं गिराया गया है, उन्हें 115-120 दिनों वाले धान के प्रभेदों यथा सहभागी सबौर हर्षित, सबौर दीप एवं कम अवधि वाली किस्मों (85-100 दिन) का बिचड़ा वैसे स्थान पर गिराएं, जहां सिंचाई की व्यवस्था सुलभ हो।
धान की सीधी बुआई करें, कम एवं मध्यम अवधि के उपलब्ध धान के उन्नतशील किस्मों को सीधी बुआई अथवा ड्रम सीडर के माध्यम से लगाएं। बुआई से पूर्व बीज की प्राइमिंग करें- बुआई से पूर्व धान के बीजों की प्राइमिंग (24 घंटे तक पानी में भिगोएं) निश्चित रूप से करें, ऐसा करने से बीज का जमाव शीघ्र होगा। डैपोग विधि से बिचड़ा लगाएं, कम समय में (11-14 दिनों में धान का बिचड़ा तैयार करने के लिये डैपोग विधि को अपनाएं। सुगंधित धान भागलपुर कतरनी का नर्सरी डालें, सुगंधित धान भागलपुर कतरनी का बिचड़ा डालने का अभी सही समय चल रहा है, इसे 30 जुलाई तक कर लें।
नमी की कमी होने पर ऊंचे खेतों में वैकल्पिक फसलों की खेती करें, नमी की कमी को देखते हुए धान के वैकल्पिक फसलों तिल (कृष्णा), मक्का (सुवान), उरद (पंत यू-31) मडुवा, सामा, कोदो, चीना, बाजरा लगाएं। पोषक अनाज की खेती जुलाई माह के अंत तक कर सकते हैं। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के अभाव में गेहूं की बुआई नहीं की जाती है, उसमें खरीफ अरहर की किस्में बहार, राजेन्द्र अरहर-1, नरेन्द्र अरहर-1, मालवीय-13 लगा सकते हैं। पोषक तत्व की कमी को दूर करें, जिन क्षेत्रों में नेत्रजन का अभाव दिख रहा हो वहां दो प्रतिशत (20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी) यूरिया का पर्णीय छिड़काव करें।
खैरा रोग यानि जिंक की कमी के लक्षण दिखाई पड़ें तो पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट, ढ़ाई किलोग्राम बुझा हुआ चूना के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से 12 सौ से 15 सौ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। चिलेटेड जिंक (ईडीटीए जिंक) एक सौ ग्राम प्रति एकड़ 120-150 लीटर पानी में रोपनी के 40-45 दिनों के बाद छिड़काव कर सकते हैं। फसल में लौह तत्व की कमी के लक्षण दिखाई दे तो एक प्रतिशत फेरस सल्फेट और 0.2 प्रतिशत साईट्रिक अम्ल अर्थात दस ग्राम फेरस सल्फेट और दो ग्राम साईट्रिक अम्ल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। साईट्रिक अम्ल की जगह नींबू रस का भी उपयोग किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए कृषि पदाधिकारी, कृषि विज्ञान केन्द्र एवं किसान कॉल सेन्टर के टॉल फ्री नंबर 18001801551 पर सम्पर्क करने की अपील की जा रही है।
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