BSE Share Price: बीएसई के शेयर का क्या है इतिहास? यहां जानें

1990 के दशक में, भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ, बीएसई में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव आए। इसमें सबसे बड़ा बदलाव कंप्यूटराइजेशन था, जिससे शेयर ट्रेडिंग प्रक्रिया अधिक तेज और पारदर्शी हो गई। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई।

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BSE Share Price: भारतीय शेयर बाजार में बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और प्रेरणादायक रहा है। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है, बल्कि इसने वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है।

बीएसई के शेयर की कीमतों का उतार-चढ़ाव भारतीय निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक रहा है, जो देश के आर्थिक स्वास्थ्य और बाजार की दिशा का निर्धारण करते हैं।

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बीएसई की स्थापना और प्रारंभिक इतिहास
बीएसई की स्थापना 1875 में की गई थी, और यह भारत का सबसे पुराना और एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज है। शुरूआत में इसका संचालन कागजों पर होता था, और शुरुआती दौर में केवल कुछ कंपनियां ही इसमें लिस्टेड थीं। बीएसई का प्रमुख उद्देश्य भारतीय व्यापारियों को एक साझा मंच प्रदान करना था, जहां वे अपने व्यापारिक लेन-देन कर सकें।

1990 के दशक में, भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ, बीएसई में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव आए। इसमें सबसे बड़ा बदलाव कंप्यूटराइजेशन था, जिससे शेयर ट्रेडिंग प्रक्रिया अधिक तेज और पारदर्शी हो गई। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हुई।

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बीएसई इंडेक्स (सेंसेक्स) और शेयर प्राइस इतिहास
बीएसई का प्रमुख इंडेक्स, सेंसेक्स, जो कि “सेंटीमेंटल एक्सचेंज इंडेक्स” का संक्षिप्त रूप है, भारत के 30 प्रमुख कंपनियों के प्रदर्शन को दर्शाता है। सेंसेक्स की शुरुआत 1986 में 1000 अंकों से हुई थी। यह इंडेक्स भारतीय शेयर बाजार के समग्र प्रदर्शन को मापने का एक महत्वपूर्ण मानक है।

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1990 के दशक में सेंसेक्स का उतार-चढ़ाव
1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद, सेंसेक्स में तेज़ी आई। 1992 में, भारत में शेयर बाजार के इतिहास का सबसे बड़ा घटनाक्रम हुआ, जब बीएसई शेयर बाजार में जमकर उथल-पुथल मच गई। इस दौरान सेंसेक्स में भारी गिरावट आई, और निवेशकों को भारी नुकसान हुआ।

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2000 के दशक में रिकवरी और वृद्धि
2000 के दशक में बीएसई का प्रदर्शन काफी सुधार हुआ। 2003-2007 के दौरान भारतीय शेयर बाजार में एक मजबूत तेजी देखी गई। 2007 में सेंसेक्स 20,000 के स्तर को पार कर गया। हालांकि, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण एक बार फिर से बीएसई में गिरावट आई, और सेंसेक्स 8,000 के नीचे गिर गया।

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2010 के बाद का विकास
2010 के बाद, भारतीय शेयर बाजार ने एक नई दिशा पकड़ी। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती, विदेशी निवेशकों का बढ़ता हुआ विश्वास और सरकार की विकासात्मक नीतियों के चलते सेंसेक्स ने नई ऊंचाइयों को छुआ। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, भारतीय शेयर बाजार में तेजी आई, और सेंसेक्स 30,000 के स्तर को पार कर गया।

2020 में कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक बाजारों में गिरावट आई, लेकिन भारतीय शेयर बाजार ने बहुत जल्दी रिकवरी की। 2021 के अंत तक, सेंसेक्स ने 50,000 के स्तर को पार किया, जो भारतीय शेयर बाजार के लिए एक ऐतिहासिक मील का पत्थर था।

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बीएसई की महत्वपूर्ण कंपनियां और उनका योगदान
बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या 5000 से अधिक है। इनमें से कुछ प्रमुख कंपनियां हैं: रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस, एचडीएफसी बैंक, और आईसीआईसीआई बैंक। ये कंपनियां न केवल बीएसई के प्रमुख हिस्से हैं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। इन कंपनियों के प्रदर्शन का सीधा असर बीएसई के सेंसेक्स पर पड़ता है।

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शेयर प्राइस का इतिहास
बीएसई के शेयर प्राइस का इतिहास भारतीय शेयर बाजार की विकास यात्रा को दर्शाता है। बीएसई ने समय-समय पर आर्थिक संकटों और वैश्विक घटनाओं के बावजूद भारतीय बाजार को स्थिरता और विकास प्रदान किया है। आने वाले समय में, बीएसई का प्रदर्शन भारतीय और वैश्विक निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक बना रहेगा, और यह भारतीय शेयर बाजार के विश्व स्तर पर मजबूत स्थिति को और भी बेहतर बनाएगा।

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