भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कोवैक्सीन को मंजूरी मिलने में देरी के लिए विदेशी कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने कोरोना रोधी कोवैक्सीन को मान्यता मिलने में बाधा डाली। जस्टिस रमन्ना ने यहां तक कहा कि विदेशी कंपनियों ने इसकी शिकायत विश्व स्वास्थ्य संगठन से कर इसकी मंजूरी मिलने में देरी करने का षड्यंत्र रचा। वे हैदराबाद में रोमिनेनी फाउंडेशन पुरस्कार समारोह में बोल रहे थे।
इस कार्यक्रम में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक डॉ कृष्णा एम. एला और सहायक प्रबंध निदेशक सुचित्रा एम एला की फार्माकोलॉजी के विकास में योगदान की सराहना की। इस अवसर पर उन्होंने फाउंडेशन की ओर से इन्हें सम्मानित भी किया।
मुख्य न्यायाधीश ने कहाः
मुख्य न्यायाधीश ने कहा,”मैं टीकों के बारे में एक बता बताना चाहता हूं। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि कोवैक्सीन कोरोना में पूरी तरह प्रभावी है। यहां तक कि नए वेरिएंट पर भी यह असरदार है। लेकिन कई लोगों ने इसकी आलोचना की क्योंकि यह मेड इन इंडिया है। कुछ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन में भी शिकायत की। जहां फाइजर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय वैक्सीन के खिलाफ काम कर रही हैं, वहीं देश में भी कई लोगों ने वैक्सीन को वैश्विक मान्यता हासिल करने से रोकने की कोशिश की।
ये भी पढ़ेः महाराष्ट्र में कब लगेगा लॉकडाउन? सरकार ने बताया
तेलुगु भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की अपील
सीजेआई ने कहा, एक तेलुगु को दुनिया भर के दूसरे तेलुगु व्यक्ति को बढ़ावा देना चाहिए। आपको यह याद रखने की जरूरत है कि एकता में बड़ी ताकत है। हमें अपनी तेलुगु भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। इस कार्यक्रम में फाउंडेशन ने अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता सोनू सूद को समाज में उनके योगदान के लिए “एवरीबडीज अवार्ड-2020” से सम्मानित किया।