सिद्धू मूसेवाला की अंतिम अरदास में 8 जून को बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लेकर उन्हें नम आंखों से याद किया। मानसा की अनाज मंडी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान पंडाल काफी छोटा पड़ गया। मूसेवाला की अंतिम अरदास में जहां कई नेताओं ने उपस्थिति दर्ज करवाई वहीं आम लोग भारी संख्या में पहुंचे थे।
इस मौके सिद्धू मूसेवाला के पिता बलकौर सिंह और मां चरण कौर भावुक हो गए। पिता ने कहा कि ‘मेरे बेटे ने किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया। मुझे नहीं पता कि उसे क्यों मारा गया है। उन्होंने फैंस को भरोसा दिलाया कि सालों तक सिद्धू मूसेवाला की आवाज गूंजती रहेगी। उन्होंने कहा कि इंसाफ की लड़ाई जारी रहेगी। फिर भी मैं सरकार को वक्त देना चाहता हूं।’
पिता ने बेटे के बचपन को किया याद
पिता बलकौर सिंह ने बताया कि ‘सिद्धू मूसेवाला का जीवन आम गांव वाले की तरह था। जब मूसेवाला नर्सरी में पढ़ता था तो गांव से बस तक नहीं जाती थी। साधन नहीं थे लेकिन किसी न किसी तरह स्कूल भेजा। मैं फायर ब्रिगेड में था तो मूसेवाला को छोडऩे के चक्कर में एकबार ड्यूटी पर 20 मिनट लेट हो गया। इसके बाद मूसेवाला को कहा कि या तो तू पढ़ेगा या मैं नौकरी करूंगा। मूसेवाला ने ढाई साल की उम्र में सेकेंड क्लास से 24 किलोमीटर साइकिल से आना-जाना किया।’
आखिर में पीछे रह गया
पिता बलकौर सिंह ने कहा कि ’29 मई को मां गांव में किसी की मौत होने पर वहां गई थी। मैंने मूसेवाला को कहा कि मैं साथ चलता हूं। तब मैं खेत से आया था। मूसेवाला ने कहा कि आपके कपड़े गंदे हैं, मैं पांच मिनट में जूस पीकर वापस आता हूं।’ बलकौर सिंह ने कहा कि ‘मैं सारी जिंदगी मूसेवाला के साथ रहा। आखिर में मैं पीछे रह गया। अब मेरे पास पछताने के सिवाय कुछ नहीं।’
मूसेवाला ने मां ने कही ये बात
मूसेवाला की मां चरण कौर ने कहा कि ’29 मई को काला दिन चढ़ा और ऐसा लगा कि मेरा सबकुछ खत्म हो गया। आप लोगों ने दुख में साथ दिया तो लगा कि मूसेवाला मेरे ही आसपास है। हमारे हौसले को इसी तरह बनाकर रखना। हर व्यक्ति मूसेवाला के नाम पर एक-एक पेड़ लगाए। उसे छोड़े नहीं, बल्कि पालकर बड़ा करें।’