दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक रेप के मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि इस सम्बन्ध में सभी राज्यों और संबंधित पक्षों से मशविरा किया जा रहा है। उसके बाद जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले पर सुनवाई टालने की मांग की, क्योंकि केंद्र सरकार राज्य सरकारों और संबंधित पक्षों से मशविरा कर रही है। उन्होंने कहा कि इस महीने की शुरुआत में केंद्र ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और राष्ट्रीय महिला आयोग को पत्र लिखकर इस मामले में अपना पक्ष बताने को कहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हर महिला की गरिमा, स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इस मामले में केवल संवैधानिक सवाल नहीं है बल्कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
अब तक की चली कार्यवाही
-न्यायालय ने 7 फरवरी को केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए दो हफ्ते का समय दिया था। सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार का ये रुख नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को हटाया जाए या रखा जाए। केंद्र सरकार अपना रुख संबंधित पक्षों से मशविरा के बाद ही तय करेगी। इस पर न्यायालय ने कहा था कि इस मामले में दो ही रास्ते हैं । पहला- न्यायिक फैसला और दूसरा- विधायिका का हस्तक्षेप। यही वजह है कि न्यायालय केंद्र का रुख जानना चाहती है।
-सुनवाई के दौरान 4 फरवरी को एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी। गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा था कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है। उन्होंने कहा था कि यौन संबंध बनाने का अधिकार न्यायालय के जरिये भी नहीं दिया जा सकता है। ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा था कि पति अगर अपनी पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए रेप से ज्यादा परेशान करनेवाला है।
-गोंजाल्वेस ने कहा था कि वैवाहिक रेप के मामले में सजा देना आसान कार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि वैवाहिक रेप का साक्ष्य देना वैसे ही कठिन कार्य है जैसा कि यौन अपराधों से जुड़े दूसरे मामलों में होता है। उन्होंने कहा था कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यौन संबंध चाहे सहमति से बने हों या सहमति के बिना लेकिन अधिकांश वाकये निजी स्थानों पर होते हैं। उसके चश्मदीद साक्ष्य नगण्य होते हैं। इन मामलों में साक्ष्य केवल पक्षकारों से जुड़े होते हैं, और ये पक्षकारों की विश्वसनीयता से जुड़ा होता है।
-सुनवाई के दौरान 2 फरवरी को याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने कहा था कि इससे जुड़े अपवाद संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है। उन्होंने कहा था कि धारा 375 का अपवाद दो किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है। ये अपवाद असंवैधानिक है, क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है।
-इसके पहले सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्यूरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा। जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है।
-केंद्र सरकार ने 24 जनवरी को कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध बनाने में परिवार के मामले के साथ-साथ महिला के सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उसके लिए इस मसले पर तत्काल अपना रुख बताना संभव नहीं है। अगर केंद्र आधे मन से अपना पक्ष रखेगी तो ये नागरिकों के साथ अन्याय होगा। 17 जनवरी को भी केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा था कि वो वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले पर अभी रुख तय नहीं किया है। मेहता ने कहा था कि ये 2015 का मामला है और अगर न्यायालय केंद्र को समय दे तो वो न्यायालय को बेहतर मदद कर पाएंगे। तब जस्टिस शकधर ने कहा था कि एक बार सुनवाई शुरू हो जाती है तो हम उसे खत्म करना चाहते हैं।
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