ये कचरा भी ऊर्जा देगा

देवनार डंपिंग ग्राउंड के कार्यों पर लगा निविदाओं का ग्रहण आखिरकार छंट गया है। अब बिजली निर्माण के लिए चेन्नई की कंपनी को ठेका दे दिया गया है। इससे साल में करीब170 लाख यूनिट और प्रतिदिन 2 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा।

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पांच साल के विभिन्न दांवपेचों के बाद आखिरकार देवनार का मुहूर्त निकल आया। ताजा निर्णय के अनुसार अब देवनार डंपिंग ग्राउंड का कचरा भी ऊर्जा देगा। डंपिंग ग्राउंड के कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया जाएगा। इस संबंध में प्रस्ताव को स्थाई समिति से मंजूरी मिल गई है।

देवनार डंपिंग ग्राउंड के कार्यों पर लगा निविदाओं का ग्रहण आखिरकार छंट गया है। अब बिजली निर्माण के लिए चेन्नई की कंपनी को ठेका दे दिया गया है। इससे साल में करीब170 लाख यूनिट और प्रतिदिन 2 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा। इस बिजली का उपयोग यहीं किया जाएगा। यह निविदा 1048 करोड़ रुपए की है, जिसमें 600 टन कचरे पर वैज्ञानिक प्रक्रिया करके उससे बिजली निर्माण किया जाएगा। इसके अलावा 15 वर्ष तक इसकी देखभाल के ठेके की लागत 400 करोड़ रुपए है।

निविदा पर नाटक

मुंबई महानगर पालिका में निविदाओं पर बड़ा नाटक सजता रहा है। देवनार डंपिंग ग्राउंड पर निविदाओं पर भी खूब नाटक हुआ। पांच साल की प्रतीक्षा में काफी समय ये परियोजना निविदाओं के आंबटन पर रुकी रही। जैविक कचरे के निस्तारण के लिए मेसर्स एसएमएस को ठेका दिया गया था जिसका काफी विरोध हुआ। इसके बाद बिजली निर्माण का भी ठेका उसे दिये जाने के बाद विवाद खड़ा हो गया था। आखिरकार प्रशासन ने दूसरे निविदाकर्ता का नाम प्रस्ताव में लाकर न सिर्फ इस विवाद को खत्म किया बल्कि बिजली निर्माण परियोजना को मूर्तरूप देने का कार्य किया।

…तो हो जाती कोर्ट की अवमानना

देवनार डंपिंग ग्राउंड की क्षमता खत्म हो गई है। यहां अब कचरा नहीं डाला जा सकता। ऐसे में यदि प्रस्ताव मंजूर न किया जाता तो ये कोर्ट की अवमानना होती। यहां पर समुद्र में नालियों का पानी विसर्जित किया जा रहा है। इसके लिए दंड भरना पड़ा रहा है। इस मामले में भी मनपा को ऐसा ही दंड भरना पड़ता। तकनीकी कमियों को देखते हुए प्रशासन द्वारा पेश किये गए प्रस्ताव को हमने मंजूरी दे दी।
यशवंत जाधव, अध्यक्ष – स्थाई समिति

पहले के प्रस्ताव में मनपा को हानि

पहले मंजूर किये गए प्रस्ताव से 173 करोड़ रुपए की हानि मनपा को हो जाती। इसके अलावा देवनार डंपिंग ग्राउंड में बिजली निर्माण योजना पर पांच साल से कोशिश की जा रही थी। शुरुआत में ज्यादा क्षमता की परियोजना पर काम करने के लिए कंपनियां ही नहीं आईं, इसलिए इसे 600 मेट्रिक टन कचरे तक सीमित कर दिया गया। इस प्रस्ताव को मंजूर करना मुंबई के हित के लिए महत्वपूर्ण था।

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