“भारतीय न्याय संहिता” (Bhartiya Nyaya Sanhita) भारत की नई आपराधिक कानून संहिता है, जिसे 2023 में भारतीय संसद में प्रस्तुत किया गया। यह संहिता 1860 की भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code, IPC) को प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से बनाई गई है। भारतीय न्याय संहिता में निम्नलिखित मुख्य बिंदु शामिल हैं: (Dhara 103)
1. सामयिक अद्यतन: यह संहिता आधुनिक संदर्भ और परिस्थितियों के अनुसार अद्यतन की गई है, ताकि यह वर्तमान समाज और अपराधों से संबंधित हो सके।
2. अधिकारों की सुरक्षा: इसमें व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा पर जोर दिया गया है, जबकि अपराधों के खिलाफ सख्त दंड का प्रावधान भी किया गया है।
3. संगठनात्मक ढांचा: इसमें कानून के प्रवर्तन और न्यायिक प्रक्रिया के लिए एक संगठित और स्पष्ट ढांचा प्रस्तुत किया गया है।
4. समावेशिता: यह संहिता भारत के विविध समाज को ध्यान में रखते हुए समावेशी दृष्टिकोण अपनाती है।
इस नई संहिता का उद्देश्य भारतीय न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी, न्यायसंगत और आधुनिक बनाना है। यह पुराने कानूनों में सुधार और अद्यतन के साथ-साथ नए अपराधों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। (Dhara 103)
भारतीय न्याय संहिता अभी भी विधायी प्रक्रिया में है और इसके विभिन्न प्रावधानों को संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने की आवश्यकता है, जिसके बाद इसे लागू किया जाएगा। (Punishment)
भारतीय न्याय संहिता (भारतीय दंड संहिता) की धारा 103 (Dhara 103) संपत्ति की रक्षा के अधिकार से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति को अपनी संपत्ति की रक्षा के लिए अत्यधिक बल का प्रयोग करने की अनुमति होती है। इसमें निम्नलिखित परिस्थितियाँ शामिल हैं:
1. घर में चोरी: जब किसी के घर में चोरी करने के इरादे से घुसा जाए।
2. डकैती: जब किसी घर में डकैती की जा रही हो।
3. रात में घर में तोड़-फोड़ (हाउस ब्रेकिंग): जब किसी घर में रात के समय जबरन घुसा जाए।
4. आगजनी: जब किसी की संपत्ति को आग लगाने की कोशिश की जा रही हो।
5. धमाका (बम विस्फोट): जब किसी संपत्ति को विस्फोटक पदार्थ से नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा हो।
इन मामलों में, यदि कोई व्यक्ति संपत्ति की रक्षा के लिए गंभीर चोट पहुँचाता है या हमला करता है, तो इसे उचित माना जाएगा और उसे इसके लिए कानूनी संरक्षण मिलेगा। (Dhara 103)
धारा 103 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति अपनी संपत्ति की रक्षा कर सके, बिना कानूनी परिणामों का सामना किए, जब तक कि वह उचित कारण और परिस्थिति में ऐसा कर रहा हो।