जम्मू-कश्मीर में चुनाव का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस कदम को ठहराया सही

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है। केंद्र की मंशा है कि नवगठित केंद्र शासित क्षेत्र में लोकतंत्र बहाल किया जाए।

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जम्मू-कश्मीर में नए परिसीमन के तहत चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। न्यायाधीश संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन और विधानसभा सीटों के बदलाव की प्रक्रिया को वैध ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार को अधिकार है कि वह परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है और केंद्र ने अपने अधिकारों का उचित प्रयोग किया है। कोर्ट ने 1 दिसंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

‘आपत्ति दर्ज कराने के लिए दिया गया पर्याप्त समय’
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने कानून को चुनौती नहीं दी है। 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा था कि केंद्र की मंशा है कि नवगठित केंद्र शासित क्षेत्र में लोकतंत्र बहाल किया जाए। सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने कहा था कि आपत्ति दर्ज कराने के लिए पर्याप्त समय दिया गया।

याचिकाकर्ता ने दी थी यह दलील
हाजी अब्दुल गनी खान और डॉ. मोहम्मद अयूब मट्टू ने याचिका दायर की थी। याचिका में जम्मू और कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा की सीटों के परिसीमन का विरोध किया गया था। याचिका में कहा गया था कि परिसीमन आयोग का गठन परिसीमन अधिनियम की धारा 3 के तहत बिना किसी क्षेत्राधिकार और अधिकार के किया गया है। याचिका में कहा गया था कि केंद्र सरकार की ओर से परिसीमन आयोग का गठन करना निर्वाचन आयोग के क्षेत्राधिकार में दखल देना है।

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याचिका में कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर में विधानसभा की सीटें 107 से बढ़ाकर 114 बढ़ाना जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 और संविधान की धारा 81,82, 170 और 330 का उल्लंघन है। जम्मू और कश्मीर की प्रस्तावित 114 सीटों में पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें भी हैं।

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