उत्तरकाशी के गोमुख ग्लेशियरों के पिघलने की वजह को लेकर वैज्ञानिकों के भले अलग-अलग मत हों किन्तु भारत का दूसरा सबसे बड़ा और गंगा को जीवन देने वाला गोमुख ग्लेशियर तेजी से पिघल रहा है। ग्लोबल वार्मिंग, बदलता मौसम चक्र जैसी वजहों से ग्लेशियर का गोमुख वाला हिस्सा तेजी से पीछे खिसक रहा है।
सरकारी आंकड़ों में 30.20 किमी लंबा गंगोत्री ग्लेशियर कंटूर मैपिंग के आधार पर अब पिघलकर 25 किलोमीटर से भी कम रह गया है। नासा के एक अध्ययन के अनुसार गंगोत्री ग्लेशियर 25 मीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से पीछे खिसक रहा है। हालांकि इसकी चौड़ाई और मोटाई में पिघलने की रफ्तार तथा सहायक ग्लेशियरों की स्थिति को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक अध्ययन सामने नहीं आया है।
कई का मिट चुका है अस्तित्व
छह दशक से भी ज्यादा समय से गंगोत्री में डेरा डाल हिमशिखरों को लांघकर हिमालय का पर्यावरणीय अध्ययन करने और साक्ष्य के तौर पर वर्ष 1948 से 1990 तक की अवधि में 8 क्विंटल स्लाइड एवं फोटो का संग्रह करने वाले 90 वर्षीय ब्रह्मलीन सुंदरानंद ने बताया था कि गंगोत्री ग्लेशियर चारों ओर से सिकुड़ रहा है। सीता, मेरू आदि कई ग्लेशियरों का अस्तित्व मिट चुका है।
मानवीय गतिविधियां रोकने की मांग
ग्लेशियर चटकना-पिघलना एक सतत प्रक्रिया है। यह कई कारणों से तेज हो रही है। गोमुख से गंगोत्री तक 18 किमी दूर ग्लेशियर के टुकड़े आना मुश्किल है। गंगोत्री ग्लेशियर में मानवीय गतिविधियां सीमित की जानी चाहिए। साथ ही भोजवासा गोमुख क्षेत्र में वानस्पतिक आवरण बढ़ाने की जरूरत है। हरमे डोकराणी ग्लेशियर में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन तथा भोजवासा एवं चीड़वासा में कार्बन डाईऑक्साइड मापने के यंत्र लगे हुए हैं।
चल रहा है अध्ययन
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा कि बढ़ते तापमान का असर गोमुख समेत अन्य ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। अभी उनका अध्ययन चल रहा है। जैसे ही रिपोर्ट तैयार होगी, उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
इस कारण बढ़ रहा है तापमान
हाल ही में चारधाम के कपाट खुले। ऐसे में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ में मानवीय चहलकदमी और सैकड़ों वाहनों की आवाजाही शुरू हुई। इससे उच्च हिमालय के तापमान में बढ़ोतरी हुई है। गंगोत्री घाटी में भी इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है। खासकर गंगा के उद्गम गोमुख ग्लेशियर पर इस साल गर्मी का असर देखने को मिल रहा है। गंगोत्री के रावल राजेश सेमवाल बताते हैं कि गोमुख ग्लेशियर पिछले साल की तुलना में काफी बदला हुआ नजर आ रहा है।
कोरोना के दो साल ने पर्यावरण को दिया सुरक्षा कवच
कोरोना काल के दो साल ने जहां पर्यावरण को सुरक्षा कवच दिया वहीं इस साल मार्च से ही गर्मी का अहसास शुरू हो गया था। अप्रैल में पारा इस कदर बढ़ा कि तापमान नीचे उतरने का नाम नहीं ले रहा। गर्मी ने मार्च और अप्रैल के पहले सप्ताह के पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। इससे अब मई दूसरे पखवाड़े से लेकर जून की तपती गर्मी की चिंता सभी को सता रही है। गर्मी इस कदर बढ़ रही कि मई माह में लू से सभी परेशान हैं। ऐसे में इस तपती गर्मी से पर्यावरण पर भी सीधा असर पड़ रहा है। खासकर इस साल जंगलों में लगी आग ने भी तापमान को दोगुना कर दिया। इसका असर मैदानी क्षेत्र से लेकर ग्लेशियर क्षेत्र पर पड़ा है।
हिमालय को बचाना है जरूरी
इधर, गोमुख ग्लेशियर बचाओ दल की शांति ठाकुर ने बताया कि हिमालय उत्तराखंड का नहीं, बल्कि पूरे भारत का प्राण है, हिमालय बचेगा तो देश बचेगा। उन्होंने कहा कि उच्च हिमालय क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप से हिमालय ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे । लंबे समय से चेता रही हूं कि गोमुख ग्लेशियर क्षेत्र में मानवीय आवाजाही बंद हो लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।