Uttar Pradesh: नगर निगम सदन की बैठक(Municipal Corporation House meeting) में गाजियाबाद का नाम बदलने के प्रस्ताव पर मुहर(Approval on the proposal to change the name of Ghaziabad) लगा दी गई। गाजियाबाद का नाम गजप्रस्थ या फिर हरनंदी नगर(Gajprastha or Harnandi Nagar) होगा। हालांकि 9 जनवरी की बैठक काफी हंगामेदार रही। बैठक में पार्षदों ने पुलिस द्वारा सदन में जाने से पहले तलाशी लेने का विरोध किया। इसके अलावा और भी कई अन्य मामलों पर पार्षदों ने हंगामा किया। महापौर सुनीता दयाल(Mayor Sunita Dayal) द्वारा शहर के 40 कम्यूनिटी सेंटरों में से 20 निजी हाथों में दिए जाने के प्रस्ताव पर पार्षदों ने जमकर हंगामा काटा।
9 जनवरी की सुबह 11 बजे बैठक महापौर सुनीता दयाल की अध्यक्षता में शुरू हुई, जो कई घंटे तक चली। बैठक में पूरक बजट को हरी झंडी दे दी गई। वहीं, गाजियाबाद का नाम बदलने के प्रस्ताव को भी पास कर दिया गया। यह प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा और शासन की अनुमति के बाद गाजियाबाद का नाम गजप्रस्थ या फिर हरनंदी नगर होगा।
जबरदस्त हंगामा
बैठक के दौरान ये भी तय हुआ कि जिन मलीन बस्ती आदि में पहली बार टैक्स तय किया जा रहा है, उनमें केवल दो साल अवधि का टैक्स वसूल किया जाएगा। निगम के पॉश कालोनियों के कम्युनिटी सेंटर जीडीए की तर्ज पर निजी हाथों में दिए जाने के प्रस्ताव को लेकर जबरदस्त हंगामा हुआ। पार्षदों के बीच नोंकझोक हुई। कुछ पार्षदों ने कहा कि जीडीए के द्वारा ज्यादातर कम्युनिटी सेंटर निजी हाथों में दिए जाने के बाद पूरे शहर में प्राधिकरण के खिलाफ माहौल है। हालांकि नगर आयुक्त बिक्रमादित्य मालिक ने कहा कि निगम को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे।
निगम की आय में बढ़ोत्तरी
निगम कार्यकारिणी उपाध्यक्ष राजीव शर्मा ने कहा कि निगम के द्वारा तरणताल भी लीज पर दिए गए, लेकिन उनसे क्या आय हासिल हो रही है, यह स्पष्ट किया जाए। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि अधिकारियों के द्वारा दावा किया जा रहा है कि निगम की आय में बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन वार्डों में प्रस्ताति 30-30 लाख राशि के काम नहीं हो रहे है।
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निगम में काम नहीं होने का आरोप
भाजपा पार्षद सचिन डागर का कहना था कि दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह है कि निगम में काम नहीं हो रहे है, पार्षद पीड़ित हैं। उनका तर्क था कि एजेंडे पर बाद में चर्चा हो। बैठक के दौरान उस वक्त हंगामेदार स्थिति पैदा हो गई जब नगर प्रशासन द्वारा तमाम पार्षदों के आगे से माइक हटवा दिए गए। सचिन डागर का तर्क था कि फिर बैठक बुलाने का औचित्य ही क्या है। हालांकि नगर आयुक्त का तर्क था कि सदन चलाने के लिए व्यवस्था बनानी होगी।