वर्षों से चल रहे इस्लामी षड्यंत्र का भंडाफोड़ अब जाकर हो रहा है। जिसे इस्लामी धर्म का आंतरिक प्रकरण मान रहे थे, वह ‘हलाल’ के रूप में गैर इस्लामियों का पंथ परिवर्तन तो नहीं करा देगा यह सबसे बड़ा प्रश्न है। इस्लामी देश और भारत में रहनेवाले इस्लामी समाज का बड़ा हिस्सा ‘हलाल’ पंजीकरण वाले उत्पादों को ही खरीदता है। ऐसे में उत्पादक या निर्माताओं के समक्ष मजबूरी है कि, वे हलाल पंजीकरण लें जिससे उनके उत्पादन को इस्लामी देशों का बाजार और इस्लामी ग्राहक मिल सके।
हिंदू संगठनों ने पिछले सप्ताह ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ में हलाल विरोधी परिषद का आयोजन किया था। इसके बाद देश भर में ‘हिंदू जनजागृति समिति’ द्वारा हलाल खाद्य पदार्थ बेचनेवाले मैकडॉनल्ड, पिज्जा हट आदि के सामने प्रदर्शन किया गया। इन प्रदर्शनों और परिषद के माध्यम से पूरे देश में एक वैचारिक क्रांति लाने का प्रयास हिंदू संगठन कर रहे हैं। जिससे हिंदू समुदाय को समझ में आए कि, हलाल कैसे उनके मैलिक अधिकारों का हनन कर रहा है? कैसे हलाल का उत्पाद गैर इस्लामी लोगों की आस्थाओं पर कुठाराघात कर रहा है?
हलाल क्या है?
मांस के हलाल पंजीयन से शुरू हुआ इस्लामी संगठनों का तंत्र अब सौंदर्य प्रसाधन, औषधि, निर्माण क्षेत्र से आगे बढ़ते हुए इंटरनेट सेवा और डेटिंग वेबसाइट क्षेत्रों में भी शुरू हो गया है। इसके माध्यम से हलाल के नाम पर एक समानांतर हलाल अर्थव्यवस्था शुरू हो गई है। भारत में हलाल प्रमाणपत्र जमियत उलेमा ए हिंद देती है, जो देश के 700 के करीब आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त लोगों को नि:शुल्क कानूनी सहायता दे रही है। इसके अलावा हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल काऊंसिल ऑफ इंडिया और ग्लोबल इस्लामिक शरीया सर्विसेस भी हलाल पंजीयन दे रहा है।
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पिरो रहे इस्लामी अर्थव्यवस्था
इनका मुख्य उद्देश्य इस्लामी अर्थव्यवस्था के माध्यम से एक समानांतर सत्ता चलाना है। जानते हैं, अभी तो मात्र हलाल प्रमाणपत्र लिये जाने का ही दबाव अरब देश और इस्लामी बना रहे हैं, इनका अगला कदम है, सभी कंपनियों में दो इस्लामी धर्मियों की स्थाई नियुक्ति करना, यानि प्रत्येक कंपनी में मुसलमानों के एजेंट बैठाए जाएंगे। जो कार्य आतंकी संगठन पीएफआई भारत और अरब देशों के बीच नौकरी देने के नाम पर कर रही थी, वह हलाल प्रमाणपत्र देनेवाली कंपनियां करेंगी।
ऐसे तो हो जाएगा पंथ परिवर्तन
‘हलाल’ कैसे हिंदुओं को नुकसान पहुंचा रहा है। यह जानने के लिए आवश्यक है यह जानना कि, हलाल कैसे किया जाता है। किसी भी जीव का जब वध किया जाता है तो, कलमा पढ़कर गर्दन को रेता जाता है। जिसमें जीव का पूरा रक्त निकल जाए। रक्त को इस्लाम में हराम माना गया है। जब वध किया जाता है तो इस्लाम धर्म के अल्लाह का नाम लेकर कलमा पढ़ा जाता है। ऐसे खाद्य पदार्थों को हलाल का पंजीकरण दिया जाता है।
इस तरह हलाल पंजीकरण प्राप्त सभी खाद्य पदार्थ इस्लामी अर्थव्यवस्था ही नहीं, इस्लामी खाद्य पदार्थ है। जैसे ईसाईयों ने मतांतरण के लिए ‘ब्रेड’ खिलाकर गरीब और अनभिज्ञ हिंदुओं के साथ खेल खेला, उसी प्रकार इस्लामी लोगों ने ‘मांस’ खिलाकर इस्लामीकरण का षड्यंत्र रचा। अब जब हलाल का खाद्य पदार्थ हिंदू खाता है तो क्या उसका मतांतरण करने का बड़ा षड्यंत्र यह नहीं है?
खान-जादा कैसे?
खान जादा का एक अर्थ है, अमीर का पुत्र। परंतु, भारत में खान का अर्थ खाने से जोड़ा गया। लोगों से बात करने पर ज्ञात होता है कि, क्षत्रिय समाज से जुड़े जिन लोगों को इस्लाम में मतांतरित किया गया, वे सभी ‘खान’उपनाम से जाने जाते हैं। वैसे इसका कोई इतिहास हमें नहीं मिला, इसलिए यह किवदंती भी हो सकती है। जबकि, इस्लाम का उद्गम स्थल अरब है, वहां ‘खान’जैसा कोई उपनाम नहीं है। कश्मीर में राजतरंगिणि में दो गुर्जर राजाओं का उल्लेख किया है, जिनके नाम उच्चाखान और अल्लखान हैं। इन राजाओं के बारे में कहा गया है कि, ये पाकिस्तान स्थित पंजाब में तीसरी शताब्दी के शासक थे। उस समय गुजरांवाला इ गुर्जर राजाओं की राजधानी थी।