अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं, हिंदू राष्ट्र की घोषणा की जाए

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हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिंदे ने कहा है कि आठ राज्य के हिंदुओं को ‘अल्पसंख्यक होने का दर्जा’ मिलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट जनहित याचिका पर केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकारों को यह निश्चित करने का अधिकार दिया है कि ‘अल्पसंख्यक कौन है? उसके अनुसार कुछ प्रतिशत हिंदुओं को उन राज्यों में यदि अल्पसंख्यक होने का दर्जा मिल भी जाए, तब भी हिंदुओं को उसका कोई उपयोग नहीं होगा क्योंकि, मुसलमानों का ‘अल्पसंख्यक दर्जा निरस्त नहीं होगा’। अल्पसंख्यक गुट के पारसी, सिख, जैन, यहूदी आदि समाज की तुलना में मुसलमानों को ही अल्पसंख्यक मंत्रालय की अधिकांश निधि और सर्व योजनाओं एवं सुविधाओं का लाभ मिल रहा है। इसलिए अल्पसंख्यक होकर भी हिन्दुओं को उसका विशेष लाभ नहीं होगा। उसकी अपेक्षा संपूर्ण भारत को हिन्दू राष्ट्र की मांग करना अधिक उचित होगा।

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सेक्यूलर शब्द ने छीने अधिकार
शिंदे समिति द्वारा आयोजित हिन्दूओं के लिए अल्पसंख्यक दर्जा कितना लाभदायक? विषय पर ऑनलाइन विशेष संवाद में बोल रहे थे। शिंदे ने कहा कि अल्पसंख्यक होने की मांग करने पर हिन्दू पुन: हिन्दू राष्ट्र की मांग नहीं कर पाएंगे। क्योंकि, अल्पसंख्यक समाज की बात कौन मानेगा? इंग्लैंड में ऊपरी सभागृह में 22 बिशप बैठते हैं। वे उनके धर्म के विरोध में एक भी कानून नहीं बनने देते। प्रत्येक देश बहुसंख्यकों का हित देखता है, परंतु भारत में ‘सेक्युलर’ शब्द लाकर बहुसंख्यक हिन्दुओं के सर्व अधिकार छीन लिए गए हैं।

विदेशों में मिले अल्पसंख्यक दर्जा
सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश इन मुस्लिम देशों में ‘शरीया’ कानून के अनुसार सर्व कारोबार चलता है और वहां हिन्दू, सिखों की जनसंख्या घटती जा रही है। वहां हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश शर्मा ने कहा कि मुसलमान और ईसाइयों को अल्पसंख्यक कहकर विशेष सुविधाएं देकर हिन्दुओं के साथ विश्वासघात किया जा रहा है।

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