आखिर लड़कियां ही कब तक होती रहेंगी शिकार

कोई भी लड़का रातोंरात हिंसक नहीं हो जाता। उसकी यह प्रवृति कभी ना कभी उसके व्यवहार में पहले भी दिखी ही होगी। लेकिन लड़कियां भविष्य में सुधार की उम्मीद कहें या किसी तरह की मजबूरी, उसे नजरअंदाज करती जाती हैं। अगर ऐसे हालात में लड़की का अपने परिवार में विश्वास कायम रहता, तो सम्भव है, वह समय रहते वापस लौट आती और अपनी पीड़ाओं को परिजनों से बांटती।

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पिछले हफ्ते पुणे में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक युवक ने एक लड़की को धारदार हथियार से वार कर लहूलुहान कर दिया था। मीडिया में खबरें आईं कि लड़का एक तरफा प्यार करता था। उसने लड़की के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे लड़की ने इंकार कर दिया था। लड़का- लड़की संबंधों को लेकर इस तरह की घटनाएं देश के हर कोने में घट रही हैं। जगह और कारण भले ही अलग-अलग हों, लेकिन उन सभी घटनाओं में एक समानता रहती ही है और वह है, लड़की के शिकार होने की। आखिर क्या कारण है कि हमेशा हिंसा का शिकार लड़की ही हो रही है।

क्यों हो जाती हैं हालात का शिकार
प्रेम संबंधों के मामले में लड़कियों के शिकार हो जाने के कई कारण हैं। वह परिवार और समाज के स्तर पर अपनो से कट सी जाती हैं। क्योंकि आज भी हमारे सामाजिक ताने बाने में लड़की के प्रेम संबंधों को सहज रूप में स्वीकारने की उदारता उतनी नहीं आई है। इसमें अभिभावकों के भी अपने तर्क होते हैं और हम उनके तर्कों को पूरी तरह से गलत भी नहीं ठहरा सकते। आखिर उन्हें जीवन का एक लंबा अनुभव होता है। कोई भी अभिभावक अपनी संतानों के भविष्य को लेकर आश्वस्त होना ही चाहता है । ऐसे में दोनों पक्ष की फिलिंग को समझने और उसमें सामनजस्य की भावना से मतभेदों को सुलझाने से सौहार्द बना रहता। लेकिन ऐसा नहीं होने पर जब कोई लड़की बगावत करके अपने प्रेम को पाने के लिए आगे बढ़ जाती है, तो वह अपने परिवार कुछ कट सी जाती है। परिवार वाले भी उससे दूरी बना लेते हैं। परिवार के साथ रिश्तेदार भी उससे मुंह मोड़ लेते हैं। ऐसे में लड़की भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाती है। फिर जब निकट भविष्य में प्रेमी से मतभेद होते हैं तो लड़की के लिए कोई सहारा नहीं दिखता। असहायता के दौर में भी लड़की अपने माता-पिता से मदद मांगने का विश्वास नहीं जुटा पाती है। दूसरी तरफ लड़का उसे अपना आसान शिकार समझ जाता है। क्योंकि वह लड़की की हर स्थिति से वाकिफ हो चुका रहता है। उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता । इस तरह से देखें तो किसी भी लड़की के इस स्थिति तक पहुंचने में लड़की के परिवार वाले भी जिम्मेदार होते हैं। आखिर जो लड़की आपको प्राणों से भी प्यारी रही है। केवल किसी लड़के से प्यार की वजह से उसे अकेला छोड़ देना क्या सही है? अपने बेटों के प्रेम संबंधों को लेकर तो इतनी कठोरता नहीं दिखती। हमें भी यह समझ है कि हमारे देश में बेटी-बहुओं को परिवार की इज्जत की रूप में देखने की रवायत है। लेकिन पाारिवारिक मामलों में उपेक्षा की भी एक सीमा तो होने चाहिए। हर मां-बाप को अपने व्यवहार में इतना तो लचीलापन रखना ही चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में उनकी संताने उनसे मदद मांगने में किसी प्रकार का संकोच ना करें । हमें इस बात से इत्तेफाक रखना होगा कि कोई भी लड़का रातोंरात हिंसक नहीं हो जाता। उसकी यह प्रवृति कभी ना कभी उसके व्यवहार में पहले भी दिखी ही होगी। लेकिन लड़कियां भविष्य में सुधार की उम्मीद कहें या किसी तरह की मजबूरी, उसे नजरअंदाज करती जाती हैं। अगर ऐसे हालात में लड़की का अपने परिवार में विश्वास कायम रहता, तो सम्भव है, वह समय रहते वापस लौट आती और अपनी पीड़ाओं को परिजनों से बांटती। बहुतायम मामलों में देखा गया है कि परिजनों की आत्मा जागती है, लेकिन सबकुछ खत्म हो जाने के बाद। एक अन्य पहलू यह भी है कि अचानक हुए हमलों में लड़कियां फ्रीज सी हो जाती हैं। माना कि प्रकृति ने स्वाभाविक रूप में स्त्री-पुरुषों की शारीरिक बनावट में अंतर रखा है। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि सच्चाई अपने आपमें सबसे बड़ी ताकत होती है और गलत की नींव रेत की तरह होती है। आप साहस की हवा तो चलाइये, रेत उड़ जाएगी।

लिव इन रिलेशनशिप
लड़का- लड़की संबंधों में हिंसा का शिकार हमेशा लड़कियों के ही होने का एक कारण लिव इन रिलेशनशिप को ठहराते हुए इसका सारा ठीकरा लड़कियों के सिर डाल दिया जाता है। माना कि लिव इन रिलेशनशिप का चलन हमारे भारतीय आचरण से मेल नहीं खाता। लेकिन क्या इसके लिए सारा दोष लड़की को ही देना उचित है ? क्या यह न्याय संगत व्यवहार है? इस सोच से तो हम हिंसा करने वाले युवक को क्लीन चिट देने का काम करते हैं और पीड़ित को ही कटघरें में खड़ा करते हैं। गलती करने वाले को गलत ठहराये बिना हम कैसे एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर पाएंगे।

कैसा तेरा प्यार, कैसा गुस्सा है तेरा
प्यार में नोक झोंक या रूठना-मनाना एक पहलू हो सकता है । लेकिन हिंसा को कतई प्यार से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। प्यार और हिंसा बिल्कुल दो छोर की तरह हैं, जो कभी एक साथ नहीं आ सकते । प्यार में गुस्सा को भी एक हद तक नजरअंदाज किया जा सकता है। क्योंकि अपनेपन के व्यवहार में गुस्से के पीछे की नीयत सुधार की होती है ना कि सामने वाले को क्षति पहुंचाने की । लड़कियों को गुस्सा और हिंसा के बीच के अंतर को बहुत बारीकी से समझना होगा। पुणे की घटना में कहा गया कि लड़का एक तरफा प्यार करता था। हमें समझना होगा, यह प्यार नहीं आकर्षण था। क्योंकि प्यार की तो कसौटी ही यह है कि हम सामने वाले के निर्णय को पूरे सम्मान के साथ स्वीकारें। क्या उसे प्रेमी कहना चाहिए, जो अपने प्यार को ही क्षति पहुंचाने पर आमादा हो। प्यार में पड़ा हुआ शख्स तो अपने आसपास के लोगों के प्रति भी उधार हो जाता है। फिर वह अपने प्यार के प्रति इतना हिंसक कैसे हो सकता है? प्यार में तो सामने वाले की खुशियां ही सर्वोपरि होती है।

जीरो टॉलरेंस की नीति जरूरी
महिलाओं की सुरक्षा के संदर्भ में जीरो टॉलरेंस की नीति से कोई भी समझौता महिला अपराधों पर ब्रेक नहीं लगा पाएगी। देश के महानगर ही नहीं, छोटे शहर या गांव तक कॉलेज जाती लड़कियों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों में एक अनजाना भय बना रहता है। लड़की के कॉलेज से आने के समय में थोड़ी भी देर होने से उनके माथे पर चिंता की लकीरे बढ़ जाती हैं । महिला अपराध चाहे किसी भी रूप में हो, इसे चूक के रूप में नजरअंदाज न किया जाए, बल्कि उसे इसकी सजा दी जाए। ताकि समाज में अन्य लोगों को एक मैसेज मिले। हमें कानून के साथ ही समाज और परिवार के स्तर पर भी इसके हल ढूंढने होंगे। परिवार के स्तर से ही बच्चों में संस्कारों का ऐसा बीजारोपण करना होगा कि किशोर और युवा होने पर भी उनमें महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता का भाव भरा रहे।

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