प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 जून को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उदयपुर की ‘सुल्तान जी की बावड़ी’ का जिक्र करते हुए उदयपुर के युवाओं की हौसला अफजाई की है। ‘मन की बात’ में जिक्र आने के बाद बावड़ी के संरक्षण के अभियान में जुटे युवाओं ने इस अभियान को और भी मजबूती से आगे बढ़ाने का संकल्प जाहिर किया है।
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पीएम मोदी ने मन की बात में जल और जलस्रोतों के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, हमारे देश में मानसून का लगातार विस्तार हो रहा है। अनेक राज्यों में बारिश बढ़ रही है। ये समय ‘जल’ और ‘जल संरक्षण’ की दिशा में विशेष प्रयास करने का भी है। हमारे देश में तो सदियों से ये ज़िम्मेदारी समाज ही मिलकर उठाता रहा है। पूर्व में भी , ‘मन की बात’ में हमने एक स्टेप वैल्स यानि बावड़ियों की विरासत पर चर्चा की थी। बावड़ी उन बड़े कुओं को कहते हैं जिन तक सीढ़ियों से उतरकर पहुंचते हैं। राजस्थान के उदयपुर में ऐसी ही सैकड़ों साल पुरानी एक बावड़ी है ‘सुल्तान की बावड़ी’। इसे राव सुल्तान सिंह ने बनवाया था, लेकिन, उपेक्षा के कारण धीरे-धीरे ये जगह वीरान होती गई और कूड़े-कचरे के ढेर में तब्दील हो गई। एक दिन कुछ युवा ऐसे ही घूमते हुए इस बावड़ी तक पहुंचे और इसकी स्थिति देखकर बहुत दुखी हुए। इन युवाओं ने उसी क्षण सुल्तान की बावड़ी की तस्वीर और तकदीर बदलने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने इस मिशन को नाम दिया – ‘सुल्तान से सुर-तान’। आप सोच रहे होंगे कि ये सुर-तान क्या है, दरअसल, अपने प्रयासों से इन युवाओं ने ना सिर्फ बावड़ी का कायाकल्प किया, बल्कि इसे, संगीत के सुर और तान से भी जोड़ दिया है। सुल्तान की बावड़ी की सफाई के बाद, उसे सजाने के बाद, वहां, सुर और संगीत का कार्यक्रम होता है। इस बदलाव की इतनी चर्चा है कि विदेश से भी कई लोग इसे देखने आने लगे हैं। इस सफल प्रयास की सबसे ख़ास बात ये है कि अभियान शुरू करने वाले युवा हैं।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपने जल-स्त्रोतों को, संगीत और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों से जोड़कर उनके प्रति इसी तरह जागरूकता का भाव पैदा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण तो वास्तव में जीवन संरक्षण है। अब कई जगह ‘नदी महोत्सव’ होने लगे हैं। अपने शहरों में भी इस तरह के जो भी जलस्रोत हैं वहां कुछ-न-कुछ आयोजन अवश्य करें।
उदयपुर शहर से सटे बेदला गांव में बेदला नदी के किनारे स्थित ‘सुलतान जी की बावड़ी’ को ‘सुर-तान’ से जोड़ने के विषय में युवा आर्किटेक्ट सुनील लढ्ढा ने बताया कि उनकी युवा टीम प्राचीन धरोहरों में प्राण फूंकने के दृष्टिकोण पर काम कर रही है। भले ही, बावड़ियों से पानी नहीं लेने के कारण उनकी उपयोगिता नहीं मानी जा रही हो, लेकिन वे हमारी धरोहर तो हैं ही, वहां की शिल्पकला के साथ बायोडायवरसिटी भी महत्वपूर्ण होती है। ऐसी धरोहरों का संरक्षण तभी संभव है जब ये उपेक्षित नहीं रहें, यहां पर आमजन को आने में रुचि उत्पन्न हो। इसी उद्देश्य से यहां पर संगीत का कार्यक्रम शुरू किया गया। इस बावड़ी का बेहतरीन शिल्प और आकार इसे ऐतिहासिक थियेटर जैसा दृश्य प्रदान करता है। ऐसे में यहां होने वाले आयोजन में जुड़ने वालों को अनोखी अनुभूति होती है। यहां पर गत अप्रैल के अंत में चित्रकारी और संगीत की जुगलबंदी का आयोजन किया गया था जिसमें विदेशी मेहमान भी जुड़े। इस तरह के आयोजनों का क्रम यहां बनाए रखने के लिए टीम संकल्पित है। इस अभियान से विद्यालयी छात्र-छात्राओं को भी जोड़ा गया है।
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