जम्मू कश्मीर में रोशनी एक्ट पर न्यायालय के आदेशों को लागू करने के लिए अब प्रश्न उठने लगे हैं। इस मुद्दे को उठानेवाले अधिवक्ता अंकुर शर्मा की रिव्यू पिटीशन पर न्यायालय ने राज्य प्रशासन से पूछा है कि आदेशों को लागू करने के लिए उसने क्या किया है?
बता दें कि, जम्मू कश्मीर विधान सभा द्वारा अधिनियमित जम्मू कश्मीर राज्य भूमि (कब्जाधारियों को स्वामित्व हस्तांतरण) अधिनियम 2001 को उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इस संदर्भ में 2016 में अधिवक्ता अंकुर शर्मा ने एक याचिका दायर की थी। जिसके निर्णय में निम्नलिखित आदेश आए…
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ये है न्यायालय का वो निर्णय
- जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने रोशनी अधिनियम को असंवेधानिक, विधिक सिद्धांतो के विरुद्ध करार दिया
- इस अधिनियम की वैधता को शून्य घोषित करते हुए इसके कार्यान्वयन के विरुद्ध निर्देश जारी किये…
- अधिनियम का दुरुपयोग करनेवाले सभी व्यक्तियों (मंत्री, विधायक , नौकरशाह, पुलिस, व्यापारी अथवा कोई भी) के नाम 1 माह में सार्वजनिक करें
⇒ 6 माह के अंदर सभी सरकारी भूमि को वापस लिया जाये
⇒ राजस्व विभाग साप्ताहिक आधार पर रिपोर्ट प्रशासन से साझा करे
⇒ प्रमुख सचिव (राजस्व विभाग) एक जनवरी 2001 के आधार पर सरकारी जमीन का ब्योरा एकत्र कर उसे वेबसाइट पर प्रदर्शित करें
⇒ राज्य के मंडलायुक्तों को रोशनी एक्ट के अलावा सरकारी जमीन पर जिलेवार कब्जे का ब्योरा सौंपने की हिदायत
Roshni Case Update: (Review Petitions)
WPPIL 41/2014 & MP 48/2014 titled Ankur Sharma V. State & Ors.
CBI registers 17 FIRs. Updates HC about Non Cooperation of Revenue Officials.
Chief Justice asks Advocate General:
"What have you done about Implementation of the Judgment?"
— Ankur Sharma (@AnkurSharma_Adv) August 2, 2021
घोटाले का लगा था आरोप
रोशनी एक्ट में 25 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप सन 2013 में तत्कालीन प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने लगाए थे। सन 2013 में एससी पांडे ने एक पत्रकार सम्मेलन में सार्वजनिक रूप से कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (सीएजी) की वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में रोशनी एक्ट से जुड़ी योजना के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया था। एससी पांडे ने कहा था कि, “सरकार और राजस्व विभाग ने सभी नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर जमीन बांटी और जम्मू-कश्मीर के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े घोटाले की इमारत तैयार कर दी। इतना ही नहीं, कृषि भूमि को मुफ्त में ही ट्रांसफर कर दिया गया।”