एक और मंदिर हुआ इस्लाम मु्क्त… उस निर्णय से मिला हिंदू पुजारी

कर्नाटक के चिकमगलूर में श्री दत्तात्रेय गुरु स्वामी पीठ का पूजा का अधिकार हिंदुओं को मिले इसके लिए लंबी लड़ाई चली। राज्य सरकार द्वारा इस प्रकरण में पूर्व में एक पक्षीय निर्णय दिये गए थे।

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कर्नाटक में हिंदुओं का आस्था केंद्र फिर उनके हाथ लौट आया है। इस पर अब तक मौलवी पूजा करते थे। उनकी मदद तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने भी की थी, परंतु न्यायालय के निर्णय से दत्त पीठ में पूजा का अधिकार हिंदू पुजारियों को मिल गया है। जिससे यह अतिप्राचीन और पवित्र पीठ इस्लाम मुक्त हो गया है।

मार्च 19, 2018 को तत्कालीन सिद्धरमैया के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार ने एक आदेश दे दिया, जिसमें श्री गुरु दत्तात्रेय स्वामी पीठ में पुजारी के रूप में सिर्फ मुजावर (मुसलमान पुजारी) की नियुक्ति की अनुमति दे दी गई। यह वहां के हिंदू समाज और पीठ से संलग्न हिंदुओं के साथ ठगी से कम न था। जिसके बाद हिंदू समाज इस निर्णय को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय की शरण में पहुंचा। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में पाया कि, सरकार का मार्च 2018 का आदेश संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा प्रदत्त अधिकारों का हनन है।

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ऐसे हुआ इस्लामी कब्जा
कर्नाटक के चिकमगलूर जिले के बाबाबुदनगिरी पहाड़ियों पर स्थित है श्री गुरु दत्तात्रेय स्वामी पीठ। इसका पौराणिक इतिहास है कि इन पहाड़ियों से ही गुरु दत्तात्रेय वेदों का पठन करके अपने शिष्यों में ज्ञान का प्रसार करते थे। गुरु दत्तात्रेय ऋषि अत्री और माता अनुसुया के पुत्र थे। कालांतर्गत यह मैसूर के मजुराई मंदिर के आ गया। इसे वॉडयार्स और रानी केलाडी चिन्नम्मा ने 200 एकड़ भूमि दान में दी थी। जिससे यहां त्रिकाल पूजा संपन्न हो पाए। इसका संचालन मुजराई मंदिर द्वारा किया जाता था। जिसका मैसूर रिलीजियस एंड चैरिटेबल इंस्टिट्यूशन एक्ट 1927 के अंतर्गत प्रबंधन होता था।

परंतु, जब भारत के धार्मिक स्थलों इस्लामी कब्जे हुए तो यह पवित्र स्थल भी अछूता नहीं रहा। मुसलमानों ने हिंदुओं के इस प्राचीनतम धार्मिक स्थल पर अधिकार जमाना शुरू किया, वे इसे श्री गुरुदत्तात्रेय बाबा बुदनस्वामी दरगाह बताते हैं। उनकी दलीलें तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने सुनी और वर्ष 1975 में श्री गुरु दत्तात्रेय स्वामी पीठ को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया।

उच्च न्यायालय ने क्या पाया?
कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय गुरु दत्तात्रेय पीठ संवर्धन समिति की याचिका पर आया है। समिति ने सिद्धरमैया सरकार के 2018 के उस निर्णय को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें पीठ का पुजारी मुस्लिम धर्मीय होने का आदेश दिया गया था। उच्च न्यायालय ने अपनी सुनवाई में कहा कि,

पहले का आदेश, सबसे पहले, राज्य ने हिंदू धर्म के अनुसार पूजा अर्चना करने के अधिकार का उल्लंघन किया है। दूसरे, राज्य सरकार ने मुजावर पर ‘पादुका पूजा’ करने और उनकी आस्था के विपरीत ‘नंद दीप’ जलाने का आदेश दिया है। ये दोनों अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा दोनों समुदायों को प्रदत्त मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है।”

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