पिछले ग्यारह महीने में किसी ने हमसे हालचाल तक नहीं पूछा। कोई संवाद नहीं… बस हम जैसे तैसे मेहनत मजूरी करके अपना घर चला रहे हैं।
ये दर्द है नीलेश तेलगडे की पत्नी का… पहचानते हैं ना आप?
इन्हें इस परिस्थिति में पहुंचाने वाले बहुसंख्य इसी समाज का हिस्सा हैं।
वह रात यानी 16 अप्रैल, 2020 को मोबाइल में शूट किया हुआ दृश्य देखकर रक्त उबल पड़ा था। जब-जब वीडियो में भागते साधु, भीड़ में धकेलकर भाग खड़े होते पुलिसवाले, पीट-पीटकर मौत की नींद सुला रही भीड़ दिखती थी… यह सब अत्यंत दर्दनाक था। रक्त उबाल ले लेता है।
उस हैवानियत में एक और दर्दनाक कहानी जुड़ी हुई है, निलेश तेलगडे की। उनकी आयु थी तीस वर्ष, घर में परिजनों के साथ पत्नी व दो छोटी-छोटी प्रारंभिक स्कूली शिक्षण लेती बच्चियां। जब घर निलेश का शव पहुंचा तो चारो ओर रोना पीटना शुरू था। इधर टीवी चैनलों पर साधुओं की हत्या को लेकर संपूर्ण संत समाज आक्रोशित था। अयोध्या से लेकर महाराष्ट्र तक संत समाज विद्रोह के लिए उतारू था। उस पर बड़ी-बड़ी बातें… सेलिब्रिटी, टीवी चैनलों के विशेषज्ञ, चैनलों के सामाजिक कार्यकर्ता सब एक से एक और उनके वादे और दावे। इस बीच निलेश का पार्थिव शरीर अंतिम यात्रा के लिए घर से निकल चुका था। अपनी एकांत और अनंत यात्रा पर…
निलेश के बाद घर पर युवा पत्नी पूजा तेलगडे हैं जो गृहिणी हैं। वे घर में परिजनों की सेवा और दोनों बच्चियों की देखभाल करती थीं। लेकिन अब समय बदल चुका था। सिर पर भारी जिम्मेदारी आ गई थी। जिसने हाथ पकड़कर सात जन्मों के साथ का वचन लिया था उसे इस निष्ठुर समाज ने छीन लिया। हिंदू समाज के नेता, सामाजिक कार्यकर्ताओं का उस समय घर में आना-जाना शुरू हो गया था। कई लोगों ने बेटियों को गोद में बैठाया, फोटो छपीं, जिम्मेदारियां ली गईं परिवार के देखरेख की। बच्चियों के शिक्षा की जिम्मेदारी ली गई। लगा जैसे निलेश के बाद यह समाज इन निराश्रितों को संभाल लेगा। लेकिन, जल्द ही सब मिथ्या थी यह समझ में आने लगा। निलेश की विदायी का एक वर्ष होने जा रहा है। पूजा निलेश तेलगडे बताती हैं ये ग्यारह महीने उनके लिये कैसे बीते।
मेरे पति की हत्या किये जाने के कारण हमें अंतिम दर्शन भी ठीक से नहीं हो पाए थे। हम जैसे-तैसे करके अपना घर चला रहे हैं। कोई नहीं पूछता।
पूजा निलेश तेलगडे
पूजा तेलगडे घर से अपनी दोनों बेटियों को लेकर बाहर आई थीं उनके चेहरे पर एक अत्मिक भाव और विश्वास दिख रहा था। वे ‘कारूलकर प्रतिष्ठान’ के कार्यालय में आई थीं। उनके साथ शीतल कारूलकर थीं। उन्होंने पूजा से हालचाल जाना और दोनों बच्चियों की पढ़ाई का पूरा खर्च सौंपा। इस खर्च में पुस्तक और फीस सबकुछ शामिल है।
‘कारूलकर प्रतिष्ठान’ के प्रमुख प्रशांत कारूलकर और उनकी पत्नी शीतल कारूलकर ने दोनों बच्चियों के पूर्ण शिक्षण की जिम्मेदारी ली है। पिछले वर्ष उन्होंने पूजा निलेश तेलगडे से भेंट की थी। उस समय परिवार को आर्थिक सहायता, आवश्यक सामान और बच्चियों के शिक्षण का खर्च सौंपा था। अपने उसी वचन को कारूलकर दंपति निभा रहे हैं।
यह कहानी नहीं एक जीवंत व्यथा है, जिसे समाज कहानी समझकर भूल गया। वर्ना ट्वीट करके लोगों से फंड रेजिंग करने की गुहार लगानेवाली रविना टंडन को कुछ करना चाहिए था।
A fund raiser for the 29 yr old driver who was lynched along with hindu sadhus 🙏 He leaves behind two little girls , please do your bit and help this family . https://t.co/dV8HbvrHRS
— Raveena Tandon (@TandonRaveena) April 23, 2020
धर्म के नाम पर उस समय और भी कई लोग आए। नेता, सामाजिक कार्यकर्ताओं में से कईयों ने वचन दिये। सोशल मीडिया का युग है तो बात लंदन भी पहुंच गई। लंदन में रहनेवाले ‘उत्तर प्रदेश कम्युनिटी एसोसिएशन ऑफ यूके (यूपीसीए)’ के अध्यक्ष मधुरेश मिश्र व संयुक्त महासचिव अश्विन श्रीवास्तव ने निलेश की दोनों बेटियों की पढ़ाई में सहयोग की घोषणा की थी।
मधुरेश मिश्र की ओर से भेजे गए बयान में कहा गया था कि इस घटना से विदेशों में रहने वाले भारतीय भी बहुत दुःखी हैं। इसलिए सभी का कर्तव्य है कि निलेश के बच्चों की पढ़ाई में सहयोग करें और जो भी संभव मदद कर सकें, उसके लिए आगे आएं।
ये पहली बरसी है। पूजा के साथ खड़े रहनेवालों में परिजन, दोनों नन्हीं बेटियां हैं और कारूलकर प्रतिष्ठान… अकेलेपन को झेल रही इस पूजा की प्रार्थना सुनें, वादे किये हों तो निभाएं… आवश्यकताएं अब भी मुंह बाए खड़ी हैं, आशाएं अब भी जीवंत हैं…
Join Our WhatsApp Community