क्या आपको पता है, प्रभु श्री राम की बहन का नाम?

भगवान श्री राम व माता सीता के जीवन का वर्णन तो है हीं साथ ही उनसे जुड़े हुए अन्य चरित्र जैसे उनके माता-पिता भाई-बहन भी थे जो मानव जाति के मार्ग प्रशस्त करते हैं।

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रामायण का हिन्दू धर्म में एक विशेष स्थान है, मनुष्य जाति को कैसे रहना चाहिए, धर्म, कर्म, संस्कार और संबंधों का कैसे पालन करना चाहिए, इसका रामायण से अनुसरण किया जा सकता है, इसमें भगवान राम व माता सीता के जीवन का वर्णन तो है ही, साथ ही उनसे जुड़े अन्य चरित्र जैसे उनके माता-पिता, भाई-बहन, सखा, संगति के लोगों का भी वर्णन है, जो मानव जाति के संबंधों के मार्ग को प्रशस्त करने की उपमा प्रदान करते हैं। प्रभु श्रीराम के पिता, भाई और माताओं के विषय में जितना सबको विदित है, उसकी अपेक्षाकृत कई संबंधी सामान्य जनों के ज्ञान से अछूते भी हैं। इसमें श्रीराम की बहन का बड़ा उदाहरण है। रामायण का सामान्य ज्ञान रखनेवालों में से बहुत कम ही लोग यह जानते हैं कि, श्रीराम जी की बहन भी थी।

आधुनिक युग में रामायण का ज्ञान
आधुनिक युग में रामायण के विषय में मूलभूत ज्ञान अध्ययन और चलचित्र के माध्यम से सभी को हो सकता है परंतु, रामायण के बहुत से ऐसे तथ्य भी हैं, जो सामान्य जनों से अछूते हैं। रामायण की मूल रचना महर्षि वाल्मिकी द्वारा की गई थी, परंतु कई अन्य संतों और वेद पंडित जैसे संत तुलसीदास, एकनाथ इत्यादि ने भी इसकी रचना की। रामायण की विभिन्न रचनाएं भले ही हुई हों परंतु, सभी में मूल-रूप एक ही है।

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ऐसे श्री राम की बहन रोमपद और वर्षिणी की पुत्री बन गई
महाराजा दशरथ और कौशल्या के एक पुत्री थी, वे संतानों में सबसे बड़ी थीं और उनका नाम था शांता। रामायण के सूक्ष्म अध्ययन के अनुसार अंग देश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी आयोध्या आए हुए थे, उन्हें कोई सन्तान नहीं थी। जब वह आयोध्या के राजा दशरथ से भेंट किये और दोनों राजाओं में चर्चा हुई तो महाराज दशरथ को यह ज्ञात हुआ। इसके पश्चात महाराजा दशरथ ने सन्तानविहिन राजा रोमपद और रानी वर्षिणी को अपनी बेटी शांता सौंप दी। इस अनुपम उपहार प्राप्ति से राजा रोमपद और रानी वर्षिणी बहुत ही हर्षित हुए। उन्होंने, शांता को पुत्री के रूप स्वीकार के रूप स्वीकार करके, उनका बहुत ही लाड-प्यार से पालन पोषण किया और माता-पिता के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया।

राजा रोमपद के द्वार से खाली हाथ पड़ा जाना
एक-बार एक ब्राह्मण अंगदेश पहुंचा और उसने राजा रोमपद से भिक्षा मांगी, परंतु राजा रोमपद राजकुमारी शांता से बातचीत में इतने व्यस्त थे कि, उन्होंने उस ब्राह्मण की ओर ध्यान नहीं दिया। उस ब्राहमण को राजा रोमपद के द्वार से खाली हाथ जाना पड़ा। इस बात से इंद्र देवता इतने क्रुद्ध हुए कि, उन्होंने उस वर्ष अंगदेश में बारिश ही नहीं होने दी, जिससे अंगदेश में सूखा पड़ गया। इस समस्या के समाधान के लिए राजा रोमपद ऋष्यशृंग के पास पहुंचे और ऋष्यशृंग के कहने पर एक यज्ञ कराया, जिसके बाद अंग देश फिर से हरा-भरा हो गया। राजा रोमपद, ऋष्यशृंग से इतने खुश हुए कि उन्होंने, अपनी पुत्री शांता का विवाह उनसे करा दिया। इसके बाद राजा दशरथ की पुत्री शांता ऋष्यशृंग के साथ उनके ही आश्रम में रहने लगी।

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