मध्य प्रदेशः इन जिलों में अब तक सामान्य से दोगुनी बारिश

यदि इस साल की अब तक की मानसूनी वर्षा का जिलेवार विश्लेषण करें तो 12 जिले ऐसे हैं, जहां 60 प्रतिशत या इससे अधिक वर्षा हुई है।

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इस मानसून सत्र में मध्यप्रदेश पर मेघ मेहरबान हैं और निरंतर वर्षा का दौर जारी है। यदि एक जून से अब तक की वर्षा के आंकड़ों पर नजऱ डालें तो दीर्घावधि औसत से मध्य प्रदेश में 23 प्रतिशत से अधिक वर्षा हो चुकी है। हालांकि पूर्वी मध्यप्रदेश में अभी भी औसत से चार प्रतिशत कम वर्षा हुई है, जबकि पश्चिमी मध्यप्रदेश में बदरा ज़्यादा बरसे और यहां अब तक औसत से 49 प्रतिशत अधिक वर्षा हो चुकी है। पूरे प्रदेश में अब तक सामान्य से दोगुनी वर्षा हो चुकी है। 18 जुलाई तक पूरे प्रदेश में 702.4 मिमी वर्षा हो चुकी है, जो सामान्य से 356.1 मिमी अधिक है।

जिलों की स्थिति
यदि इस साल की अब तक की मानसूनी वर्षा का जिलेवार विश्लेषण करें तो 12 जिले ऐसे हैं, जहां 60 प्रतिशत या इससे अधिक वर्षा हुई है। इनमें राजगढ़ (68), आगर मालवा(70), शाजापुर (79),भोपाल (106), सीहोर (83), देवास (97),हरदा (111), खंडवा (117), बुरहानपुर (99), नर्मदापुरम (73), बैतूल (108) और छिंदवाड़ा (96 ) शामिल हैं। वहीं सामान्य से अधिक (अर्थात 20 प्रतिशत से 59 प्रतिशत) वाली श्रेणी में भी 12 जिले आ रहे हैं। यह हैं श्योपुर (40),गुना (46),विदिशा (59),रायसेन (37),सिवनी (46), नीमच (47),मंदसौर (22),रतलाम (34),उज्जैन (44),इंदौर (39), बड़वानी (36)और खरगोन (40)। जहाँ तक सामान्य वर्षा (अर्थात 19 प्रतिशत से -19 प्रतिशत) की बात है तो इस श्रेणी में 6 जिले ग्वालियर (8 ),सागर (14),नरसिंहपुर (9),जबलपुर (14), बालाघाट (15)और अनूपपुर (1) ऐसे हैं, जहाँ धनात्मक वर्षा हुई है, जबकि मुरैना (-3),शिवपुरी (-8 ),अशोकनगर (-6 ),दमोह (-13),मंडला (-5) और शहडोल (-13 ) में ऋणात्मक वर्षा हुई है अर्थात यहाँ -19 प्रतिशत से भी कम वर्षा हुई है। जबकि अति न्यून वर्षा (-60 से -99 त्न ) वाली श्रेणी में एकमात्र सीधी (-63) जिला आ रहा है।

कम बारिश वाले जिले
न्यून वर्षा (-20 प्रतिशत से -59 प्रतिशत) वाली श्रेणी में प्रदेश के 11 जिले आ रहे हैं। यह हैं भिंड (-47), दतिया (-46 ), निवाड़ी (-28), टीकमगढ़ (-50), छतरपुर (-37),पन्ना (-41),सतना (-54),रीवा (-56),कटनी (-33),उमरिया (-31) और डिंडोरी (-25)। इन जिलों में अभी और वर्षा की दरकार है। अभी मानसून सक्रिय है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि मानसून सत्र के अंत तक इन जिलों में भी वर्षा के आवश्यक जल की पूर्ति हो जाएगी।

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