पश्चिम बंगाल में दुर्गा आराधना का महोत्सव अंतिम दौर में पहुंच चुका है। राज्य के कोने कोने में हर गली मोहल्ले चौक चौराहों पर बने पूजा पंडालों से “ओम दुर्गे देवी क्षमा धात्री स्वाहा, हरि ओम तत्सत स्वाहा” आदि हवन मंत्रोंचार हर तरफ गूंज रहे हैं। इसके साथ पूजा पंडालों से निकलने वाली ढ़ाक की आवाजें माहौल को भक्तिमय बना रही है।
दरअसल पश्चिम बंगाल में नवमी के दिन मां दुर्गा की आराधना के लिए हवन की विशेष परंपरा रही है। इसी दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा भी होती है जैसे किसी मनोकामना पूर्ति के लिए अलग-अलग भोग के साथ मां की आराधना।
कई दशकों पहले राज्य के विभिन्न हिस्सों में देवी दुर्गा को खुश करने के लिए नवमी के दिन ही पशु बलि भी दी जाती थी लेकिन समय बदलने के साथ बलि प्रथा पर विराम लगा है। अब पशु की जगह फल काटकर मां को अर्पित किया जाता है। प्रथा के मुताबिक कोलकाता के शोभा बाजार राजबाड़ी, दत्तबाड़ी, ठाकुरबाड़ी और हटखोला जमींदार घराने में नवमी के दिन मां के लिए विशेष हवन का आयोजन किया गया है। राज्य के अन्य हिस्सों में जहां नवमी के दिन मां दुर्गा को अन्न का भोग लगाया जाता है वहीं राजबाड़ी और जमींदार घरानों में बलि प्रथा का रिवाज रहा है। अधिकतर जगहों पर फल काटकर मां को चढ़ाया गया है। इसके अलावा चावल, केला, दूध और मिठाई के साथ संदेश आदि मिलाकर देवी को भोग चढ़ाया गया है। कुछ जगहों पर मांगुर मछली भी बलि के तौर पर दी जाती है लेकिन अधिकतर जगहों पर कुम्हड़ा और अन्य फल काटे जाते हैं। इसके बाद विशेष अंजलि का रिवाज है।
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हवन और भोग के मंत्रोचार की गूंज
अधिकतर पंडालों में शाम के समय मिश्री, जल और मक्खन मिलाकर देवी को शीतल भोग लगाया जाता है। उसके बाद सूखी हुई मिठाई का प्रसाद लोगों में वितरित किया जाता है। पूरे राज्य में करीब 43 हजार दुर्गा पूजा मंडप बनाए गए हैं जिनमें से अकेले कोलकाता में तीन हजार से अधिक पूजा पंडाल हैं। इसके अलावा जमींदार घरों की पूजा अलग से होती है। नवमी को पूरे राज्य में हवन और भोग के मंत्रोचार गूंज रहे हैं। हवन के साथ अग्नि में भी धूप और पंचगव्य समर्पण के साथ ही देवी की स्तुति की जाती है। कुछ जगहों पर नवमी के दिन भी कुमारी पूजन का आयोजन किया गया है। इसके साथ ही शाम गुजरते ही दशमी शुरू हो जाएगी जब देवी दुर्गा को नम आंखों से बंगाल में विदाई दी जानी है।