मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद : शाही ईदगाह हटाने की मांग वाली याचिका सुनवाई के लिए मंजूर

काशी और मथुरा का विवाद कुछ हद तक अयोध्या जैसा ही है। हिंदुओं का दावा है कि औरंगजेब ने काशी और मथुरा में मंदिरों को तोड़ा और मस्जिदों का निर्माण किया।

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वाराणसी में ज्ञानवापी के बाद अब कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद मामले की सुनवाई भी न्यायालय में होगी। मथुरा कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। याचिका में कहा गया है कि शाही ईदगाह मस्जिद कृष्णा की जन्मभूमि पर बनी है, इसलिए इसे हटा दिया जाना चाहिए। कोर्ट मथुरा में कृष्णा जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के मामले की भी सुनवाई करेगा। जिला न्यायालय ने सिविल जज के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर यह आदेश पारित किया।

मथुरा कोर्ट में याचिका दायर
इससे पहले दीवानी अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद हिंदू पक्ष ने मथुरा कोर्ट में याचिका दायर की। अब मथुरा कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा है कि इसकी सुनवाई किसी दीवानी अदालत से की जाए। मथुरा कोर्ट ने श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह से संबंधित याचिका को बरकरार रखा है, जिसे जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजीव भारती ने बरकरार रखा था।

ईदगाह की जमीन पर मालिकाना हक का दावा
कृष्णा जन्मभूमि ईदगाह मस्जिद विवाद की सुनवाई 6 मई को मथुरा जिला न्यायालय में पूरी हुई। सभी पक्षों की राय सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया। इस मामले में वकील रंजना अग्निहोत्री समेत 6 याचिकाकर्ता हैं। शाही ईदगाह स्थल के स्वामित्व का दावा करते हुए 2020 में याचिका दायर की गई थी।

क्या है मथुरा विवाद
-सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन और रंजना अग्निहोत्री द्वारा दायर वाद के अनुसार 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है। इसमें से 10.9 एकड़ जमीन श्री कृष्ण जन्मस्थान के पास और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है।

-काशी और मथुरा का विवाद कुछ हद तक अयोध्या जैसा ही है। हिंदुओं का दावा है कि औरंगजेब ने काशी और मथुरा में मंदिरों को तोड़ा और मस्जिदों का निर्माण किया। औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया और 1670 में मथुरा में केसर केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया। इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया। मथुरा में पिछले साल विवाद तब शुरू हुआ, जब अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने ईदगाह मस्जिद में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित करने और पानी से अभिषेक करने की घोषणा की। हालांकि, हिंदू महासभा ऐसा नहीं कर सकी।

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