Mumbai: इन 9 श्मशानों में पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की कोशिश, मनपा ने उठाया ये कदम

मुंबई महानगरपालिका के श्मशान घाट में अब पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने पर मनपा ने जोर दिया है और वर्तमान में अधिक लकड़ी का उपयोग कर बनाई जाने वाली चिताओं की जगह अब पर्यावरण संरक्षण कैसे हो, इस सोच के साथ चिताओं का निर्माण किया जाएगा।

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सचिन धनजी

Mumbai: मुंबई महानगरपालिका के श्मशान घाट में अब पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने पर मनपा ने जोर दिया है और वर्तमान में अधिक लकड़ी का उपयोग कर बनाई जाने वाली चिताओं की जगह अब पर्यावरण संरक्षण कैसे हो, इस सोच के साथ चिताओं का निर्माण किया जाएगा। इसमें कम से कम लकड़ी का प्रयोग किया जाएगा। इसका इस्तेमाल मुंबई के 9 श्मशान भूमि में किया जाएगा। जलाने की इस नई विधि में छर्रों और ब्रिकेट्स का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाएगा। इससे दाह संस्कार की अवधि कम होगी और वायु प्रदूषण भी कम होगा।

कम लकड़ी में दाह संस्कार
मुंबई मनपा के विभिन्न श्मशानों में शवों के पारंपरिक दाह संस्कार के लिए लकड़ी चिता विधि, विद्युत दाहिनी और गैस दाहिनी का उपयोग किया जाता है। पारंपरिक दाह संस्कार के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग किया जाता है। दाह संस्कार के लिए चिताओं का उपयोग करने से पर्यावरणीय क्षति काफी होती है। इसके उलट नयी चिता में लकड़ी कम लगती है, साथ ही वायु प्रदूषण भी कम होता है।

सायन में बनाया गया पायलट शवदाहिनी
जुलाई 2020 से नगर निगम ने प्रायोगिक तौर पर इस विधि का प्रयोग मनपा सायन श्मशान में किया था। इस सफल प्रयोग के बाद अब 9 श्मशानों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए मनपा की ओर से विभिन्न करों पर करीब 29 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे और प्रत्येक श्मशान भूमि में ऐसी चिताओं पर औसतन 9 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये जायेंगे। इन कार्यों के लिए मनपा द्वारा ओमेक्स कंट्रोल सिस्टम का चयन किया गया है।

इलेक्ट्रिक एवं पीएनजी पर आधारित चिता का उपयोग सर्वश्रेष्ठ
मुंबई महानगरपालिका के कई शवदाह गृहों में इलेक्ट्रिक और पीएनजी आधारित चिताएं हैं और जहां ये उपलब्ध नहीं हैं, वहां अब पर्यावरण-अनुकूल चिताएं बनाने का निर्णय लिया गया है। हालांकि, दाह संस्कार के लिए पारंपरिक चिताओं के बजाय इलेक्ट्रिक या पीएनजी आधारित दाह संस्कार चिताओं का उपयोग किया जाना चाहिए। ये सच्चे पर्यावरण पूरक कब्रिस्तान हैं। अत: मनपा प्रशासन की ओर से अनुरोध है कि अधिक से अधिक से अधिक लोग इलेक्ट्रिक एवं पीएनजी पर आधारित चिता का उपयोग करें।

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पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल फायरप्लेस के बीच क्या अंतर है?

पारंपरिक चिता: दाह संस्कार के लिए प्रति शव लगभग 350 से 400 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग होता है।

पर्यावरण-अनुकूल चिता: प्रति शव लगभग 100 से 125 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग, ईंधन के रूप में फूस और ब्रिकेट का उपयोग।

पारंपरिक चिताएं: यह विधि वायु प्रदूषण का कारण बनती है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है

पर्यावरण अनुकूल चिता: पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण के कारण लगभग प्रदूषण मुक्त

पारंपरिक दाह संस्कार: दाह संस्कार के लिए प्रति शव 4 घंटे

पर्यावरण-अनुकूल दाह-संस्कार: प्रति शव डेढ़ घंटे

पारंपरिक चिता: कार्बन उत्सर्जन लगभग 600 किलोग्राम/दहन के आसपास होता है

पर्यावरण के अनुकूल चिता: कार्बन उत्सर्जन 160 किग्रा/दहन से कम हुआ

ये किन कब्रिस्तानों में होगा

भोईवाड़ा श्मशान

रे रोड वैंकुठ धाम श्मशान

वडाला गोवारी श्मशान

विक्रोली टैगोर नगर श्मशान घाट

गोवंडी देवनार कॉलोनी श्मशान

चेंबूर पोस्टल कॉलोनी अमरधाम श्मशान

बोरीवली बाबई श्मशान

ओशिवारा कब्रिस्तान

गोरेगांव शिवधाम श्मशान

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