हिजाब को लेकर जारी विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई जारी है। इस बीच 12 सितंबर को मुस्लिम पक्षकार ने इस पर यू टर्न ले लिया। उनके सुर बदल गए। मुस्लिम पक्षकार ने कहा है कि हिजाब को कुरान की बजाय महिला अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने हिजाब को इस्लाम में जरुरी बताया था।
12 सितंबर को मुस्लिम पक्ष के वकील एच मुछाला और सलमान खुर्शीद ने कहा कि कोर्ट अरबी भाषा का जानकार नहीं है। इसलिए वह कुरान को सही तरीके से नहीं समझ सकता। उन्होंने तर्क देते हुए कहा कि न्यायालय को हिजाब के मामले में महिला की निजता, सम्मान और पहचान सुरक्षित रखने के अधिकार के रूप में देखने की जरुरत है।
हिजाब को लेकर दिया ये तर्क
खुर्शीद ने कहा कि भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में सांस्कृतिक प्रथाओं के सम्मान करने की जरुरत है। मुस्लिम महिलाएं यूनिफॉर्म पहनने के नियम से मना नहीं कर रही हैं। लेकिन वे अपनी सांस्कृतिक जरुरत और निजी पसंद से हिजाब के रूप में अतिरिक्त कपड़ा पहनना चाहती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने मांगी सफाई
इनकी दलील सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय से उनकी बातों को लेकर सफाई मांगी। कोर्ट ने कहा कि पहले आपने यह कहा कि हिजाब धार्मिक अधिकार है। अब आप तर्क दे रहे हैं कि हिजाब धार्मिक अधिकार है। अब आप अलग तर्क दे रहे हैं। आप तर्क दे रहे हैं कि मामले को 9 जजों की बेंच को यह पता करने के लिए भेजा जाना चाहिए, कि यह जरुरी है या नहीं।