अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ओरियन कैप्सूल 12 दिसंबर को वापस पृथ्वी पर लौट आया। यह कैप्सूल ने 40 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की तेज रफ्तार से वायुमंडल में प्रविष्ट हुआ। पृथ्वी के वायुमंडल में आने के बाद कैप्सूल प्रशांत महासागर में निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उतरा। बिना यात्री के अंतरिक्ष में गए इस कैप्सूल ने चंद्रमा की परिक्रमा कर स्थितियों का आकलन किया और तस्वीरें लीं। कैप्सूल की यह यात्रा नासा के आर्टमिस ल्यूनर प्रोग्राम का हिस्सा थी। यह प्रोग्राम अपोलो अंतरिक्ष यान के चंद्रमा की सतह पर उतरने के 50 साल बाद शुरू किया गया है। बूंद की आकार का ओरियन कैप्सूल अपने साथ मानव के आकार के तीन पुतले लेकर अंतरिक्ष में गया। इन पुतलों में तारों के जरिए सेंसर बांधे गए थे। बता दें कि चंद्रमा एक उपग्रह है।
चंद्रमा के बारे में और अधिक मिलेगी जानकारी
अत्यधिक ज्यादा और कम तापमान वाले क्षेत्रों से गुजरते हुए यह कैप्सूल अमेरिकी समयानुसार 12 दिसंबर प्रात: 9.40 बजे प्रशांत महासागर में उतरा। यह कैप्सूल मेक्सिको के बाजा कैलिफोर्निया प्रायद्वीप के नजदीक उतरा है। कैमरों की तस्वीरों और सेंसर के डेटा का अध्ययन कर चंद्रमा के संबंध में और जानकारियां एकत्रित की जाएंगी। साथ ही देखा जाएगा कि दूरस्थ क्षेत्र की यात्रा कर अंतरिक्ष यात्री किस सीमा तक सुरक्षित रहकर वापस लौट सकते हैं। नासा के अधिकारी राब नावियास के अनुसार इस अध्ययन से हम चंद्रमा के बारे में ज्यादा जान पाएंगे और उसके करीब पहुंच पाएंगे।
ओरियन चंद्रमा के दूर छोर तक पहुंचने में रहा सफल
ओरियन कैप्सूल चंद्रमा के सबसे ज्यादा दूर छोर तक पहुंचने में सफल रहा। यह दूरी पृथ्वी से 4,34,500 किलोमीटर है। 12 दिसंबर की सुबह कैप्सूल ने जब 40 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की भीषण रफ्तार से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया तो कुछ क्षणों के लिए नासा के कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिकों की सांसें रुक गईं। यह वह समय होता है जब कैप्सूल या कोई भी अंतरिक्ष यान अत्यधिक तापमान के बीच से गुजरता है। ओरियन कैप्सूल ने इस दौरान 2,760 डिग्री सेल्सियस का तापमान सहन किया। यह लोहे को पिघलाने वाले तापमान से करीब दो गुना ज्यादा था। उसे झेलकर ओरियन वापस पृथ्वी पर आने में सफल रहा। ओरियन को 16 नवंबर को अमेरिका के फ्लोरिडा के केप केनवरल स्थित केनेडी स्पेस सेंटर से छोड़ा गया था।