परीक्षा का तनाव दूर करने के लिए ये है मोदी सर का मंत्र!

प्रधानमंत्री ने कहा कि समस्या ऑनलाइन या ऑफलाइन अध्ययन के तरीकों से नहीं है। ऑफलाइन अध्ययन में भी, मन बहुत विचलित हो सकता है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1 अप्रैल को ‘परीक्षा पे चर्चा’ के दौरान विद्यार्थियों को परीक्षाओं को त्योहार के रूप में लेने की सलाह देते हुए कहा कि ऐसा करने से उन्हें तनाव की समस्या नहीं होगी। उन्होंने विद्यार्थियों को ‘एकाग्रता’ के साथ पढ़ाई करने की सलाह देते हुए कहा कि मन को स्थिर करना जरूरी है। ऐसा करने से उन्हें परीक्षा हाल में पढ़ा हुआ भूलने की समस्या पेश नहीं आएगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रेरणा का कोई इंजेक्शन नहीं होता है इसलिए आप अपने अंदर की सकारात्मक शक्ति को पहचानें। बोर्ड परीक्षाओं के तुरन्त बाद प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों की उलझन को लेकर उन्होंने कहा कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के बजाय विषय में महारत हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए।

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प्रश्न के जवाब में क्या कहा?
परिजनों की बच्चों से अपेक्षाओं से जुड़े प्रश्न के जवाब में प्रधानमंत्री ने अभिभावक और शिक्षक से अपनी आकांक्षाओं का बोझ बच्चों पर नहीं डालने की भी अपील की। उन्होंने माता-पिता और शिक्षकों से यह स्वीकार करने का आग्रह किया कि प्रत्येक छात्र में कोई न कोई विशेष क्षमता होती है और वह उसे खोजता है। उन्होंने छात्र से कहा कि अपनी ताकत को पहचानें और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें।

एक अन्य सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा, “प्रेरणा के लिए कोई इंजेक्शन या फॉर्मूला नहीं है। इसके बजाय, अपने आप को बेहतर तरीके से खोजें और पता करें कि आपको क्या खुशी मिलती है और उस पर काम करें।” उन्होंने छात्रों से उन चीजों की पहचान करने के लिए कहा जो उन्हें स्वाभाविक रूप से प्रेरित करती हैं, उन्होंने इस प्रक्रिया में स्वायत्तता पर जोर दिया और छात्रों से कहा कि वे अपने संकटों के लिए सहानुभूति प्राप्त करने का प्रयास न करें। उन्होंने छात्रों को अपने आस-पास देखने की सलाह दी कि बच्चे, दिव्यांग और प्रकृति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कैसे प्रयास करते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक एग्जाम वॉरियर से यह भी याद किया कि कैसे ‘परीक्षा’ के लिए एक पत्र लिखकर और अपनी ताकत और तैयारी के साथ परीक्षा को चुनौती देकर प्रेरित महसूस किया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने की परीक्षा पे चर्चा
प्रधानमंत्री ने विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों के प्रश्नों के जवाब देते हुए कहा कि परीक्षा पे चर्चा उनका पसंदीदा कार्यक्रम है। उन्होंने शनिवार से शुरु हो रहे विक्रम संवत नव वर्ष की बधाई दी। प्रधानमंत्री ने पीपीसी के 5वें संस्करण में नई प्रथा की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि इस दौरान जो प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं, उनका नमो एप पर वीडियो, ऑडियो या टेक्स्ट मैसेज के जरिए जवाब दिया जाएगा।

जम्मू-कश्मीर के उधमपुर की एरिका जॉर्ज ने पूछा कि उन लोगों के लिए क्या किया जा सकता है जो जानकार हैं लेकिन कुछ कारणों से सही परीक्षा में शामिल नहीं हो पाए। गौतमबुद्धनगर के ओम मिश्रा ने पूछा कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं और बोर्ड परीक्षा के लिए अध्ययन की मांगों को कैसे संभालना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि परीक्षा के लिए पढ़ना गलत है। उन्होंने कहा कि अगर कोई पूरे मन से पाठ्यक्रम का अध्ययन करता है, तो अलग-अलग परीक्षाएं मायने नहीं रखती हैं। उन्होंने कहा कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के बजाय विषय में महारत हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि एथलीट खेल के लिए प्रशिक्षण लेते हैं न कि प्रतियोगिता के लिए। उन्होंने कहा, “आप एक विशेष पीढ़ी के हैं। हां, प्रतिस्पर्धा अधिक है लेकिन अवसर भी अधिक हैं।

परीक्षा को लेकर तनाव के बारे में पूछे गये एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे तनाव में न रहें क्योंकि यह उनके द्वारा दी जाने वाली पहली परीक्षा नहीं है। पिछली परीक्षाओं से उन्हें जो अनुभव मिला है, उससे उन्हें आगामी परीक्षाओं को पार करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम का कुछ हिस्सा छूट सकता है, लेकिन उन्हें इस पर ज्याद जोर नहीं देना चाहिए। प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि उन्हें अपनी तैयारी की ताकत पर ध्यान देना चाहिए और अपने दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या में तनावमुक्त और स्वाभाविक रहना चाहिए। दूसरों की नकल के रूप में कुछ भी नया करने की कोशिश करने से बचना चाहिए।

ऑनलाइन शिक्षा की चुनौती को लेकर पूछे गये एक प्रश्न के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि समस्या ऑनलाइन या ऑफलाइन अध्ययन के तरीकों से नहीं है। ऑफ़लाइन अध्ययन में भी, मन बहुत विचलित हो सकता है। उऩ्होंने कहा कि यह माध्यम नहीं बल्कि मन की समस्या है। उन्होंने कहा कि सीखने के नए तरीकों को एक अवसर के रूप में लिया जाना चाहिए, चुनौती के रूप में नहीं। ऑनलाइन आपके ऑफ़लाइन सीखने को बढ़ा सकता है।

नई शिक्षा नीति को लेकर सवाल
नई शिक्षा नीति को लेकर पूछे गये एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरे भारत के लोगों से विचार-विमर्श के बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया गया था। उन्होंने कहा कि पहले, शारीरिक शिक्षा और प्रशिक्षण पाठ्येतर गतिविधियां थीं। लेकिन अब वे शिक्षा का हिस्सा बन गए हैं। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी के अनुकूल नीतियों और व्यवस्थाओं को नहीं ढाला तो हम पिछड़ जाएंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के हिस्से के रूप में कौशल को शामिल करने का यही कारण है। उन्होंने पूरे देश के स्कूलों से छात्रों द्वारा आविष्कृत नई तकनीकों को लागू करने के नए तरीके खोजने का आग्रह किया।

विषयों को शिक्षक द्वारा पढ़ाने के थोड़ी देर बाद भूल जाने के सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर चीजों को पूरे ध्यान से सीखा जाएगा तो कुछ भी नहीं भुलाया जा सकेगा। उन्होंने छात्र से वर्तमान में पूरी तरह उपस्थित रहने को कहा। वर्तमान के बारे में यह सचेतनता उन्हें बेहतर ढंग से सीखने और याद रखने में मदद करेगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान सबसे बड़ा ‘वर्तमान’ है और जो वर्तमान में रहता है और उसे पूरी तरह से समझता है वह जीवन का अधिकतम लाभ उठाता है।

समाज कैसे योगदान दे सकता है
गुजरात के नवसारी की सीमा चेतन देसाई ने प्रधानमंत्री से पूछा कि ग्रामीण लड़कियों के उत्थान में समाज कैसे योगदान दे सकता है। मोदी ने जोर देकर कहा कि लड़कियों की उचित शिक्षा सुनिश्चित किए बिना कोई भी समाज सुधार नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि बेटियों के अवसरों और सशक्तिकरण को संस्थागत बनाया जाना चाहिए। लड़कियां अधिक मूल्यवान संपत्ति बन रही हैं और यह बदलाव स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव के वर्ष में, भारत में स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे अधिक संसद सदस्य बेटियां हैं। उन्होंने कहा, “बेटी परिवार की ताकत होती है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारी नारी शक्ति को उत्कृष्ट देखने से बेहतर और क्या हो सकता है।

 पर्यावरण की सुरक्षा में योगदान
नई पीढ़ी को पर्यावरण की सुरक्षा में योगदान को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह नागरिकों के योगदान से ही संभव हो सकता है। उन्होंने “पी3 मूवमेंट” – प्रो प्लैनेट पीपल एंड लाइफस्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट- लाइफ के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें ‘यूज एंड थ्रो’ संस्कृति से दूर होकर सर्कुलर इकोनॉमी की जीवनशैली की ओर बढ़ना होगा।

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