भारत में गैर सरकारी संस्थाएं: जनसेवा के नाम, क्या-क्या काम?

2015 में एक मामले के संदर्भ में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि देश में लगभग 31 लाख गैर सरकारी संगठन कार्यरत् हैं। लेकिन इन गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के कार्यों और वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता का अभाव है। रिपोर्ट के अनुसार कुल एनजीओ में से 10% से भी कम ने अपनी बैलेंस शीट और आय-व्यय की जानकारी सरकार से साझा की है।

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भारत में वैसे 2015 तक 31 लाख गैर सरकारी संस्थाएं कार्यरत् थीं। जिनमें से बड़ी संख्या में संस्थाओं की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में रही और उसका उसका कारण भी अलग-अलग रहा है। इन संस्थाओं की स्थापना वैसे तो सेवा कार्यों के लिए की गई थी लेकिन राह भटकने या उसकी आड़ में दूसरे कार्यों को अंजाम देने का सिलसिला शुरू हो गया। जिसके कारण सरकार को इन संस्थाओं पर शिकंजा कसना शुरू करना पड़ा।
देश में गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से बड़े स्तर पर सुविधाएं और सेवाकार्य किये जाते हैं। लेकिन इन गैर सरकारी संस्थाओं में बड़ी संख्या में ऐसी संस्थाएं हैं जो विदेशों से अनुदान लेकर यहां मतांतर या अन्य राष्ट्र विरोधी कार्यों में लीन हैं। 2015 में एक मामले के संदर्भ में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि देश में लगभग 31 लाख गैर सरकारी संगठन कार्यरत् हैं। लेकिन इन गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) के कार्यों और वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता का अभाव है। रिपोर्ट के अनुसार कुल एनजीओ में से 10% से भी कम ने अपनी बैलेंस शीट और आय-व्यय की जानकारी सरकार से साझा की है। वर्ष 2017 में इन एनजीओ को लगातार 5 वर्षो तक अपने वार्षिक रिटर्न न दाखिल करने के कारण नोटिस जारी किया गया था। देश में इतनी बड़ी संख्या में कार्यरत् गैर सरकारी संस्थाएं आखिर क्या हैं? यह जानना भी जरूरी है।

गैर सरकारी संस्थाओं की पीर, विदेशी फंड पर सरकारी तीर

किसे कहते हैं गैर-सरकारी संस्था?
गैर-लाभकारी या गैर-सरकारी संस्थान या एनजीओ से आशय ऐसी संस्थाओं से है जो न तो सरकार का हिस्सा होती हैं और न ही वे अन्य व्यावसायिक संस्थानों की तरह लाभ के उद्देश्य से कार्य करती हैं। भारत में ‘धार्मिक विन्यास अधिनियम, 1863’, सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882’ आदि के तहत एनजीओ का पंजीकरण किया जाता है।

क्या है विदेशी अंशदान?
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत किसी व्यक्ति/संस्था/कंपनी आदि द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी विदेशी स्रोत से उपहार के रूप में प्राप्त कोई वस्तु, मुद्रा या प्रतिभूतियों (जिसका मूल्य उस तिथि को 25,000 रुपए से अधिक हो) को विदेशी अंशदान के रूप में परिभाषित किया गया है।

फंड का फंडा, एमनेस्टी पर डंडा

कैसे नियंत्रित होता है विदेशी अंशदान?
* किसी विदेशी नागरिक या संस्था द्वारा भारत में किसी गैर सरकारी संस्था या अन्य संस्थाओं को दिये गए अंशदान को विनियमित करने के लिये वर्ष 1976 में विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (Foreign Contribution Regulation Act -FCRA) लागू किया गया।

* वर्ष 2010 में इस अधिनियम में बड़े पैमाने पर सुधार किये गए। भारत में कार्यरत एनजीओ को विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लिये एफसीआरए के अंतर्गत केंद्रीय गृह मंत्रालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है।

* इस अधिनियम के तहत एनजीओ का एफसीआरए लाइसेंस पांच वर्ष के लिये वैध होता है।

* एफसीआरए के अंतर्गत पंजीकरण के बगैर कोई भी एनजीओ या अन्य संस्थान 25,000 रुपए से अधिक की आर्थिक सहायता या कोई अन्य विदेशी अंशदान नहीं स्वीकार कर सकते।

  • एफसीआरए में सितंबर 2020 में एमंडमेंट लाया गया जिसके अंतर्गत गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा अपने प्रबंधन के लिए उपयोग किये जानेवाले विदेशी अंशदान की सीमा को 20 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है।
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