चंद्रपुर सुपर थर्मल पॉवर स्टेशन पर इस उल्लंघन पर लग गया जुर्माना

एनजीटी ने कहा कि यदि निरोधात्मक उपाय छह महीने तक नहीं किए गए तो संयुक्त कमेटी जुर्माने की रकम बढ़ा सकती है। यहां तक कि संयुक्त कमेटी पावर स्टेशन को बंद करने का आदेश दे सकती है।

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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने के मामले में महाराष्ट्र के चंद्रपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन पर पांच करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने जुर्माने की ये रकम एक महीने के अंदर जमा करने का निर्देश दिया।

एनजीटी ने चंद्रपुर में हवा की खराब गुणवत्ता को देखते हुए चंद्रपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन की ओर से पर्यावरण के उल्लंघन का आंकलन करने के लिए एक संयुक्त कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में वन और पर्यावरण मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी और महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक प्रतिनिधि को शामिल किया गया है। ये कमेटी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक इस बात का आंकलन करेगा कि पूर्व में पावर स्टेशन ने कानून का कितना उल्लंघन किया है।

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तब सुपर थर्मल पॉवर स्टेशन हो जाएगा बंद
एनजीटी ने कहा कि पावर स्टेशन अगर तीन महीने के अंदर पर्यावरण की क्षति रोकने के लिए निरोधात्मक उपाय नहीं अपनाए तो हर महीने, तीन महीने तक एक-एक करोड़ रुपये का जुर्माना भरना होगा। एनजीटी ने कहा कि यदि निरोधात्मक उपाय छह महीने तक नहीं किए गए तो संयुक्त कमेटी जुर्माने की रकम बढ़ा सकती है। यहां तक कि संयुक्त कमेटी पावर स्टेशन को बंद करने का आदेश दे सकती है। एनजीटी ने संयुक्त कमेटी को निर्देश दिया कि वो चंद्रपुर के लोगों के स्वास्थ्य का आकलन करेगा।

एनजीटी ने कहा कि 6 जनवरी, 2021 को प्रदूषण बोर्ड की संयुक्त कमेटी ने जो रिपोर्ट दी, उसके मुताबिक सल्फर डाईऑक्साईड और पीएम की मात्रा तय मानकों से काफी अधिक थी। चंद्रपुर पावर स्टेशन कोयले का इस्तेमाल करता है, जिसमें सल्फर की मात्रा काफी अधिक होती है। सल्फर को निष्क्रिय करने वाले एफजीडी को भी इंस्टाल नहीं किया गया है। चंद्रपुर के तीन मानिटरिंग सेंटर पर वायु की गुणवत्ता काफी निचले दर्जे की है। पावर स्टेशन से उड़ती धूल को रोकने का भी कोई उपाय नहीं किया गया है। फ्लाई ऐश का पूरा-पूरा उपयोग भी नहीं किया जाता है। फ्लाई ऐश को खुले में निस्तारित किया जाता है, जो एयर एक्ट का सीधा-सीधा उल्लंघन है।

याचिका मधुसूदन रुंगटा ने दायर की है। ये याचिका पहले बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में 2017 में दायर की गई थी। हाईकोर्ट में महाराष्ट्र राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस मामले को एनजीटी में ट्रांसफर करने की मांग की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले को 29 जनवरी, 2020 को एनजीटी में ट्रांसफर कर दिया।

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