बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा ने लेह में गुरुवार को सिंधु घाट पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि हम तिब्बती की आजादी नहीं, तर्कसंगत स्वायत्ता मांग रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक जिम्मेदारी से सेवानिवृत्त होने से पहले बीच का रास्ता ढूंढना है। हम तिब्बत को लेकर ऐसा समाधान मांग रहे हैं, जो सबको मंजूर हो। उन्होंने कहा कि हमारा मुख्य लक्ष्य तिब्बत की पहचान, भाषा और तिब्बती बौद्ध धर्म का संरक्षण करना है।
26 अगस्त को दलाई लामा लेह से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इससे पहले 25 अगस्त को दलाई लामा के सम्मान में लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन एवं लद्दाख गोंपा एसोसिएशन ने लेह के स्पितुक में सिंधु नदी के किनारे कार्यक्रम का आयोजन किया।
लद्दाख के लोगों की सराहना
दलाई लामा ने चीन से सटे लद्दाख में भारत की सराहना करते हुए कहा कि इस देश के सदियों पुराने अंहिसा और करुणा के सिद्धांतों में विश्व में सौहार्द एवं शांति कायम करने की सामर्थता है। लद्दाख उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द एवं भाईचारा कायम रखने के लिए लद्दाख के लोगों की भी सराहना की।
लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन ने दलाई लामा के प्रति जताया आभार
इससे पहले लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के प्रधान एवं पूर्व सांसद थुप्स्तन छिवांग ने दलाई लामा का आभार जताया। उन्होंने कहा कि दलाई लामा ने लद्दाख दौरे के दौरान लिंगशेड, जंस्कार, लेह की मस्जिद, चर्च से अपने प्रवचनों में विश्व शांति एवं मानव कल्याण का संदेश दिया। उन्होंने उम्मीद जताई है कि दलाई लामा भविष्य में भी लद्दाख आकर लोगों की उम्मीदों को पूरा करेंगे।
पेश किए गए सांस्कृति कार्यक्रम
इस दौरान दलाई लामा ने लेह के चुशोत, गोंगमा में तेनजिन ग्यातसो इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर एंड एथिक्स बनाने के लिए नींव पत्थर भी रखा। उन्होंने इंस्टीट्यूट का निमार्ण कार्य शुरू करवाने के लिए तीन लाख रुपये का सहयोग भी दिया। दलाई लामा के आज स्पितुक पहुंचने पर उनका जोरदार स्वागत किया गया। इस दौरान पारंपरिक परिधान पहले लद्दाखी कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किया।