पालघर जिले के मुरबे गांव का मछुआरा अपनी नाव लेकर मत्स्यमारी के लिए निकला था। मॉनसून के जोर के कारण दिक्कत हो रही थी। लेकिन उसके साथ कुछ ऐसा घटित हुआ कि उसकी आशाओं को नए पंख मिल गए। उसे अब रोज की दाल रोटी के लिए चिंता नहीं करनी होगी। क्योंकि उसकी जाल में सवा करोड़ से अधिक की आवक है।
दरअसल, मछुआरे चंद्रकांत तरे के जाल में समुद्र का ऐसा सोना लगा था जिसकी उसे आशा नहीं थी। मछली मारने के लिए वे समुद्र में 25 नॉटिकल माइल अंदर गए थे। वहां उन्होंने अपना वागरा जाल बिछाया था। ये जाल कुछ घंटों की प्रतीक्षा के बाद उन्होंने नाव में समेटना शुरू किया। जब जाल धीरे-धीरे लपेटना शुरू किया तो एक-एक मछली नाव में आने लगी। इन्हें देखकर चंद्रकांत और उसके आठ साथियों की आंखें आश्चर्य में थी। जब पूरा जाल नाव में चढ़ गया तो 157 मछलियां उनकी नाव में थीं। ये सभी ऐसी प्रजाति की थीं जिनके शरीर का प्रत्येक हिस्सा लाखो रुपए में बिकता है।
ये भी पढ़ें – धमकी से डरे राउत? सरकार ने दिया सुरक्षा का वरदान
मिल गई घोल
यह 157 मछलियां घोल प्रजाति की हैं। इनका वजन 12 किलोग्राम से 25 किलोग्राम के बीच था। इसके मांस की दर प्रतिकिलो 300-350 रुपए स्थानीय व्यापारियों के लिए है। इसके अलावा इसकी आंत (भोत) के रेसे की कीमत और अधिक होती है। इसकी नीलामी होती है। चंद्रकांत ने अपनी समुद्री सौगात को सातपाटी में नीलामी के लिए रखा। जिसमें उत्तर प्रदेश के व्यापारियों ने 1 करोड़ 33 लाख रुपए में खरीद लिया। चंद्रकांत के साथ उसके आठ सहयोगी भी थे। इतनी कमाई से सभी के चेहरे पर आनंद है।
नर की कीमत अधिक
घोल प्रजाति के मछलियों में नर की कीमत मादा से अधिक होती है। इसका मास, आंत सब का सब लाखो की कीमत में बिकता है। इसकी मांग हॉंगकॉंग, मलेशिया, थाइलैंड जैसे देशों में बहुत अधिक है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत बहुत बढ़ जाती है।
ऐसा है उपयोग
इस मछली के मांस, आंत आदि का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, औषधि, शस्त्रक्रिया के धागे के निर्माण में किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, इसकी आंतों से बने धागे के टांके से दाग नहीं पड़ते और वह घाव के ठीक होने के साथ ही गल जाते हैं।