Sawara: वीर सावरकर के जीवन के हर पहलू का भावनात्मक चित्रण करता नाटक ‘सावरा’

पिछले 15 वर्षों में हिंदी में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के व्यक्तित्व पर कई पुस्तकें लिखी गईं हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। इसी क्रम में मशहूर लेखक, नाटककार, कवि गणपत स्वरूप पाठक द्वारा लिखी गई पुस्तक वीर सावरकर और उनके परिवार तथा स्वतंत्रता के महासंग्राम में उनका साथ देने वाले देशभक्तों के त्याग, संघर्ष और बलिदान की अमर कहानी है।

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Sawara: स्वातंत्र्यवीर सावरकर का व्यक्तित्व सागर की तरह विशाल है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। उस सागर में तरह-तरह के कीमती रत्न छिपे हैं। बस, तलाश करने वाला चाहिए। इसलिए उनके व्यक्तित्व पर जितना भी लिखा जाए, कहा जाए, कम जान पड़ता है। पिछले 15 वर्षों में हिंदी में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के व्यक्तित्व पर कई पुस्तकें लिखी गईं हैं, लेकिन अभी भी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। इसी क्रम में मशहूर लेखक, नाटककार, कवि गणपत स्वरूप पाठक द्वारा लिखी गई पुस्तक वीर सावरकर और उनके परिवार तथा स्वतंत्रता के महासंग्राम में उनका साथ देने वाले देशभक्तों के त्याग, संघर्ष और बलिदान की अमर कहानी है।

गणपत स्वरूप पाठक द्वारा लिखे इस मर्मस्पर्शी नाटक के आमुख में लिखा गया है, “सावरकर जी की गाथा मतलब भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत सेनानियों की कहानी है। सावरकर की कथा में सबकी कथा है। नाटककार आमुख में लिखता है, एक-एक कर लगभग 40 से ज्यादा पुस्तकें और स्रोत देख डाले। ज्यों-ज्यों कोई नया संदर्भ मिलता, उसे खंगालने में लग जाता। उनके जीवन को मंच पर दृश्यमान करने और उसे स्तुति व अतिश्योक्ति की चमक से दूर रखने में मैंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी। एक कदम चलता तो कभी हरिण की तरह ऊर्जा से भरी बड़ी लंबी कूद भी लगा लेता। जो महत्व वाले बिंदू थे, वे मुझसे छोड़े नहीं गए, इसलिए ये नाटक एक महागाथा बन गया।”

पूरे सावरकर परिवार ने लड़ा स्वतंत्रता संग्राम
दरअस्ल 222 पृष्ठ के इस नाटक में स्वातंत्र्यवीर सावरकर और उनके परिवार तथा स्वतंत्रता महासंग्राम में शामिल अन्य शूर वीरों की दिल को छू लेने वाली दास्तां हैं। नाटक पढ़कर ऐसा लगता है कि केवल विनायक दामोदर सावरकर ही नहीं, उनका पूरा परिवार स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा हो। बाबा सावरकर, (यशोदा) येसु वहिनी( भाभी), नारायण सावरकर( छोटे भाई) सभी इस नाटक में देश की स्वतंत्रता के लिए सहर्ष अपना सर्वस्व न्यौछावर करते नजर आते हैं। नाटककार के सब कुछ समेटने के मोह ने इस नाटक को महानाटक बना दिया। इसका बड़ा लाभ यह होगा कि पाठक या दर्शक को इस नाटक में वीर सावरकर के साथ ही उनके परिवार और मदन धींगड़ा, श्याम कृष्ण वर्मा, मदाम कामा जैसे देशप्रेमियों में स्वतंत्रता के लिए तड़प और त्याग के दर्शन एक साथ हो सकेंगे।

पुस्तक में नौ भाग
पुस्तक को नौ भागों में बांटा गया है। इससे दर्शकों या पाठकों के लिए यह समझना आसान हो जाता है कि नाटक के इस भाग में क्या कुछ हो सकता है। नाटक का पहले भाग में भगूर स्मृति में उनके बचपन के कार्य कलाप के दर्शन होते हैं। बचपन में शिक्षा के साथ देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति उनकी तड़प मनोभाव के दर्शन इस भाग में स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं।

सबको केवल स्वतंत्रता की चिंता
बचपन की देश की स्वतंत्रता के प्रति तड़प हर भाग में बढ़ती जाती है। देशभक्त सावरकर परिवार स्वतंत्रता के इस संग्राम को महायज्ञ समझकर कूद जाता है और फिर अपनी चिंता किसी को नहीं रहती है। सब एक दूसरे की चिंता करते हैं और सबका उद्देश्य एक ही है भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाना।

प्रमाणिक नाटक
नाटककार गणपत स्वरूप पाठक ने इस नाटक को लिखने के लिए काफी मेहनत की है। वे इसे प्रमाणिक नाटक बताते हैं। इस लिहाज से निश्चित रूप से यह पुस्तक वीर सावरकर और उनके परिजनों के साथ ही अन्य स्वतंत्रा सेनानियों के लिए यह नाटक काफी महत्वपूर्ण है। पुस्तक पढ़ते समय कई अवसर ऐसे आते हैं, जब दर्शकों/ पाठकों की आंखें नम हो जाती हैं।

येसु वहिनी( यशोदा) का त्याग
खासकर के येसु वहिनी का त्याग और परिवार के प्रति प्रेम-स्नेह मन को उद्वेलित कर देता है और हमारा सिर उनके सामने सम्मान से झुक जाता है। इसी तरह वीर सावकर के बड़े भाई बाबाराव सावरकर की देशभक्ति और अपने भाइयों के प्रति लगाव मन को बार-बार छू जाता है।

सभी महत्वपूर्ण प्रसंग पर प्रकाश
नाटक में वीर सावरकर के जीवन के सभी महत्वपूर्ण प्रसंग को बखूबी दर्शाया गया है। नाटक पढ़ते हुए पाठक खुद भी स्वतंत्रता संग्राम का एक सिपाही अनुभव करता है। वह देशभक्ति के रंग में रंग जाता है और एक-एक भाग पढ़ते हुए वह स्वतंत्रता संग्राम के सफर पर निकल पड़ता है।

कुछ दिल को छू लेने वाले कुछ प्रसंग
-नासिक में प्लेग का प्रकोप है और हर तरफ मौत की खबरें आ रही हैं। उस स्थिति में यशोदा( येसु वहिनी) टूट जाती हैं। उनके पति गणेश पंत यानी बाबराव भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। इस स्थिति में निराश यशोदा कहती है, “आंखों के आगे अधेरा हो रहा है, तात्या( विनायक)। गणेशपंत( पति) को कुछ हो या तो मेरा जीवन..” ( मूर्छित हो जाती हैं।)

-बालक विनायक ढांढस बंधाते हुए कहता है, येसु वहिनी, उठो, बाबाराव को क्या होगा, जो दूसरों की सेवा करता आया है, उसका बाल भी बांका न होगा। समझे, आज घर से अर्थी निकल रही है। सभी का मन व्याकुल है। राधा मां( अपनी मां) की वत्सलता हम तुझमें देखते हैं। आई है तू मेरी और बाल( छोटे भाई) की।

-जीवन से लड़ते-लड़ते येसु वहिनी की मृत्यु हो चुकी है। वीर सावरकर के छोटे भाई नारायण, उनकी पत्नी शांता और विनायक दामोदर सावरकर की पत्नी यमुना अंडमान में सेल्युलर सेल में मिलने आते हैं।

सावरकरः वह हमारी राधा मां थी यमुना। आज हम सचमुच अनाथ हो गए।

यमुनाः मुझ पर भी वैसा ही स्नेह रखा। दोपहर में विष्णु मंदिर में मुझे बुला लेती थीं मिलने। हम सब बिखर गए।(सिसकने लगती है) आप ठीक तो हैं ना।

सावरकरः (झूठी हंसी हंसकर) देखो, अब मेैं सोचता हूं..कि हम सागर किनारे एक कुटिया बना लेंगे। झोपड़ी के सामने एक मंडप बनाएंगे, जिस पर फूलदार बेलों की छानी बना लेंगे।अच्छा बताओ, तुम्हें कौन-सी बेल पसंद है।

यमुनाः (आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली) कैसे बनाएंगे हम ऐसा संसार..

सावरकरः सुनो, मोतियो की बेल हम लगाएंगे। हम दोनों को पसंद है। और यहां तुमने बुलबुल बहुत देखी होगी आते-आते। तीसरी मंजिल पर कोठरी है। वहां से इनके तमाशे देखता रहता हूं। हम बुलबुल पालेंगे। हमारी गृहस्थी की बेल पर भी फूल खिलने वाले हैं। अरे, हम बूढ़े थोड़े ही हो गए। अब आंसू पोछ दो। बस-बस..(पास खड़े प्रहरियों के भी आंसू बह रहे हैं और वे अपनी जगह स्थिर खड़े अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।)

महानाटक
नाटक के हिसाब से यह पुस्तक काफी बड़ी है। लेकिन इस पर अच्छी-सी वेब सीरीज बनाई जा सकती है। नाटक की स्क्रिप्ट पर काफी मेहनत की गईम है। वेब सीरीज के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। निश्चित रूप से यह वेबसीरीज वीर सावरकर के साथ ही स्वतंत्रता के इतिहास को संजोने का प्रयास होगा।

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लेखक परिचय
गणपत स्वरूप पाठक सिंधिया स्कूल, ग्वालियर दुर्ग में हिंदी अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। इसके साथ ही वे स्क्रीन राइटर एसोसिएशन के फेलोमेंबर भी हैं। अबतक उन्होंने छांव बरगद की( कविता संग्रह),पछतावा, सजा, प्रतिबिंब अतीत की स्मृति भविष्य का झरोखा, मिट्टी का तेल( अप्रकाशित नाटक) श्रेया ( स्क्रीनप्ले)फरहत( कहानी) मेरा दिल गिटार है( गीत) पुस्तकें लिखी हैं। भविष्य में उनसे हिंदी साहित्य को और भी काफी उम्मीदें हैं।

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