स्वातंत्र्यवीर सावरकर में अनन्य श्रद्धा रखनेवाले थे सेठ भागोजी कीर

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भागोजी कीर और स्वातंत्र्यवीर सावरकर का संबंध बहुत ही मधुर और नजदीकी रहा। रत्नागिरी पर्व और उसके पश्चात के वीर सावरकर के जीवन में भागोजी कीर ने बड़ी भूमिका निभाई। अस्पृश्यता समाप्ति के लिए वीर सावरकर ने जो आंदोलन खड़ा किया उसमें आर्थिक रूप से भागोजी कीर ने कभी कोई कमी नहीं पड़ने दी। पतित पावन मंदिर निर्माण से संपर्क में आए स्वातंत्र्यवीर सावरकर और भागोजी कीर का संबंध अंत तक विद्यमान रहा।

जाति पाति में बँटे समाज में सभी को एक साथ लाने का कार्य स्वातंत्र्यवीर सावरकर के रत्नागिरी पर्व का वह हिस्सा है जिसे पूरे भारत ने अपनाया। इसमें प्रमुख कार्य था अस्पृश्यता निर्मूलन और उसके लिए पूर्वास्पृश्यों को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश दिलाना और सभी को एक पंत्ति में बैठाकर भोजन करवाना। इस कार्य के लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने सेठ भागोजी कीर के समक्ष पतितपावन मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव रखा, जिसे दो वर्षों में सेठ भागोजी कीर ने खड़ा करा दिया। इस मंदिर के माध्यम से दो बड़े कार्य हुए, जिसमें से एक अस्पृश्यता निर्मूलन कार्य और दूसरा हिंदू महासभा के कार्य को मिली गति।

सरस्वती और लक्ष्मी का मिलाप
स्वातंत्र्यवीर सावरकर को सरस्वती के रूप में निरूपित किया गया है, अर्थात सरस्वती के पास धन की कमी रहती है। राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने रत्नागिरी में अपने स्थानबद्धता काल में समाजोत्थान कार्य शुरू कर दिया था। एक ओर ब्रिटिश सरकार द्वारा वीर सावरकर पर लादे गए असीमित प्रतिबंध, बैरिस्टरी न करने का आदेश और दूसरी ओर जीवन यापन के लिए अन्य बंदियों की अपेक्षाकृत एकदम कम निर्वाह भत्ता ने रत्नागिरी में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के लिए जीवन कठिन कर दिया था। ऐसे समय सेठ भागोजी कीर लक्ष्मी के रूप में आए और राष्ट्र कार्य के लिए अर्पित स्वातंत्र्यवीर सावरकर को समाजोत्थान कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराया।

जिस काल में 18 रुपए तोला सोना था, उस काल में एक लाख रुपए खर्च करके सेठ भागोजी कीर ने मात्र स्वातंत्र्यवीर सावरकर के कहने पर पतितपावन मंदिर निर्माण करवाया। इसके बाद मंदिर के कार्यक्रम का सारा खार्च वे देते रहे। हिंदू महासभा को चंदा भी दिया। सितंबर 1930 से 10 जून 1937 के बीच कुल सात अखिल हिंदू गशेशोत्सव स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने पतितपावन मंदिर में आयोजित किये, जिसका पूरा व्यय सेठ भागोजी कीर ने किया।

मुंबई में संबंध हुए अधिक सुदृढ़
स्थानबद्धता समाप्त होने के पश्चात स्वातंत्र्यवीर सावरकर मुंबई आए। यहां उन्होंने दादर के अपने निवास के रूप चुना। यहां स्वातंत्र्यवीर सावरकर और सेठ भागोजी कीर के संबंधों की सुदृढ़ता मिली। इन दोनों के संबंधों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, समयांतर में सेठ भागोजी कीर को हृदयाघात झेलना पड़ा। इसके बाद सेठ को डॉक्टर ने विश्राम की सलाह दी। जिसके बाद स्वातंत्र्यवीर सावरकर अपने निवास से सेठ भागोजी कीर के माहिम स्थित भागेश्वर भुवन प्रतिदिन जाते थे और स्वास्थ्य की पूछताछ कर वापस आते थे। उसी प्रकार सेठ भागोजी कीर वीर सावरकर को विनायक के रूप में गणपति देव कहते थे।

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सभी हिंदुओं के लिए खुला दादर का स्मशानगृह
दादर के छत्रपति शिवाजी महाराज पार्क का विशाल भूखंड कभी सेठ भागोजी कीर की संपत्ति में से एक था। वहां पर एक हिंदू स्मशानगृह सेठ भागोजी कीर ने बनावाया था। जिसे सभी हिंदुओं के लिए खोलने का आग्रह स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने किया, जिसे सेठ भागोजी कीर ने माना और उस पर अमल हुआ।

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