शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri) के आठवें दिन महाअष्टमी (Maha Ashtami) पर 22 अक्टूबर को वाराणसी में लाखों श्रद्धालुओं ने महागौरी अन्नपूर्णा (Mahagauri Annapurna) के दरबार में हाजिरी लगाई। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र स्थित दरबार में दर्शन पूजन के बाद महिलाओं ने परिवार में सुख, शान्ति,वंशवृद्धि की कामना की।
आधी रात से कतारबद्ध हुए श्रद्धालु
दरबार में आधी रात के बाद से ही श्रद्धालु (devotees) दर्शन के लिए कतारबद्ध होने लगे। मंदिर में दर्शन पूजन के दौरान श्रद्धालु महागौरी माता के प्रति श्रद्धा भाव दिखाते रहे। कड़ी सुरक्षा के बीच बैरिकेटिंग में कतारबद्ध श्रद्धालु अपनी बारी का इन्तजार मां का गगनभेदी जयकारा लगाकर करते रहे। इसके पहले रात तीन बजे से महंत शंकर पुरी की देखरेख में माता के विग्रह को पंचामृत स्नान कराया गया। नवीन वस्त्र और आभूषण धारण कराने के बाद भोग लगाकर मां महागौरी की मंगला आरती (Mangala Aarti) वैदिक मंत्रोच्चार के बीच की गई। अलसुबह मंदिर का पट खुलते ही पहले से ही कतार में प्रतीक्षारत श्रद्धालु नर—नारी माता रानी के प्रथम तल स्थित गर्भगृह के पास पहुंचे और दर्शन पूजन किया। इसके पहले श्रद्धालु गर्भगृह परिसर की परिक्रमा भी करते रहे। यह सिलसिला देर शाम तक चलता रहेगा। लाखों श्रद्धालु अष्टमी का व्रत भी रखे हुए हैं।
महादेव ने लौटाई देवी की कांति
महागौरी अन्नपूर्णा के दर्शन मात्र से ही पूर्व के पाप नष्ट हो जाते हैं। देवी की साधना करने वालों को समस्त प्रकार की अलौकिक सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त होती हैं। मान्यता है कि माता रानी ने 08 साल की उम्र से ही भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया था। कठोर तप करने के कारण देवी कृष्ण वर्ण की हो गई थी। लेकिन उनकी तपस्या को देख महादेव ने गंगाजल से देवी की कांति को वापस लौटा दिया, इस प्रकार देवी को महागौरी का नाम मिला।
महागौरी की शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी
देवी भागवत पुराण के अनुसार भगवान शिव के साथ उनकी पत्नी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। उसके पूर्व संचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।
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