स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक द्वारा दिये जानेवाले शिखर सावरकर पुरस्कार का तीसरा समारोह महाराष्ट्र के राजभवन में संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में राज्यपाल रमेश बैस प्रमुख अतिथि थे, उन्होंने अपने संबोधन में वीर सावरकर स्मारक द्वारा संचालित क्रीडा स्पर्धाओं का उल्लेख किया और स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के खिलाड़ियों के ओलंपिक स्पर्धा में पदक जीतने की आशा व्यक्त की।
ओलंपिक में प्राप्त करें विजयश्री
राज्यपाल रमेश बैस (Governor Ramesh Bais) ने कहा कि, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक (Swatantryaveer Savarkar Rashtriya Smarak) ने हाल के वर्षों में बड़ी कीर्ति अर्जित की है। इस संस्था के खिलाड़ी देश-विदेश में महाराष्ट्र का नाम ऊंचा कर रहे हैं। अब अपेक्षा है कि, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के खिलाड़ी ओलंपिक पदक जीतकर लाएं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 50वीं पुण्यतिथि पर स्मारक के पर्वतारोहियों के दल ने हिमाचल प्रदेश में अति दुर्गम शिखर पर सफलता से चढ़ाई पूरी की और उसे शिखर सावरकर नाम दिया यह मुझे आज पता चला और मेरा सिर अभिमान से ऊंचा हो गया। स्वांत्र्यवीर सावरकर वर्ण व्यवस्था के तीव्र विरोधी थे। अत: जातिभेद उच्चाटन ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हिमालय जर्नल के संपादक और वरिष्ठ पर्वतारोही हरीश कपाड़िया द्वारा किये गए हिमालय पर्वत शृंखलाओं के अध्ययन का उल्लेख करते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने उन्हें शिखर सावरकर जीवन गौरव सम्मान प्राप्ति पर शुभकामनाएं दीं।
किले हैं सांस्कृतिक विरासत
राज्य के प्रत्येक दुर्ग और किले (Fort) का अपना इतिहास है। रायगढ, शिवनेरी, सिंहगढ, प्रतापगढ के शिवकालीन किले महाराष्ट्र के ही नहीं बल्कि देश की सांस्कृति विरासत हैं। यह किले राज्य की संस्कृति के धरोहर हैं, उनका संरक्षण और जिर्णोद्धार करना चाहिये। इन किलों पर शैक्षणिक पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिये। वर्षाकाल में दुर्ग और किले पर होनेवाली पार्टियों के बारे में जब पढ़ता हूं तो मन दु:खी हो जाता है। स्थानीय लोगों की सहायता से यदि इन विरासतों का जतन किया गया और विरासत के लिए शोभनीय पर्यटन को बढ़ावा दिया गया तो इन किलों का संरक्षण तो होगा ही साथ ही नौकरियों के अवसर भी उत्पन्न होंगे।
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वीर सावरकर ने सदा किया साहस का सम्मान – रणजीत सावरकर
स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर (Ranjit Savarkar) ने कहा कि, स्वातंत्र्यवीर सावरकर (Swatantryaveer Savarkar) की विचारधारा का प्रचार प्रसार करना ही स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक का कार्य है। ऐसे में बहुत से लोग यह पूछते हैं कि, तब आप लोग पर्वतारोहण का पुरस्कार वीर सावरकर के नाम से क्यों देते हो? ऐसे लोगों को वीर सावरकर क्या हैं यह पता नहीं होता, पर्वतारोहण का अर्थ ही है वीर सावरकर। पर्वतारोहण एक साहसी क्रिया है और वीर सावरकर साहस का सम्मान करते थे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 50वीं पुण्यतिथि पर वर्ष 2018 में कुछ पर्वतारोहियों ने हिमाचल प्रदेश के उस शिखर पर चढ़ाई पूरी की जिस पर तब तक कोई पहुंचा नहीं था। इन पर्वतारोहियों ने उस शिखर को ‘शिखर सावरकर’ का नाम दिया। पर्वतारोहण साहसी और संगठन शक्ति का कार्य है, इसलिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की ओर से वर्ष 2020 से पर्वतारोहियों को शिखर सावरकर पुरस्कार दिया जाता है।
शिखर सावरकर पुरस्कार 2023 से सम्मानित सभी प्रतिभाओं का राज्यपाल रमेश बैस ने अभिनंदन किया। जबकि, शिखर सावरकर जीवन गौरव पुरस्कार (Swatantryaveer Savarkar Jeevan Gaurav Puraskar) से सम्मानित होनेवाले हरीश कपाड़िया ने संबोधन में अपने सम्मान को अपने हुतात्मा पुत्र नवांग कपाड़िया को समर्पित किया। शिखर सावरकर युवा साहस पुरस्कार 2023 से मोहन हुले को जबकि, शिखर सावरकर दुर्ग संरक्षण पुरस्कार 2023 से दुर्गवीर प्रतिष्ठान को सम्मानित किया गया।
राजभवन में संपन्न इस कार्यक्रम में राज्यपाल रमेश बैस, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर, कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे, कार्यवाह राजेंद्र वराडकर, सह कार्यवाह स्वप्निल सावरकर, स्मारक सदस्य के.सरस्वती, नरेंद्र केणी, संतोष कारकर, देवेंद्र गंद्रे, हेमंत तांबट, पुलिस अधिकारी तथा पर्वतारोही राजू पाटील, कमलाकर गुरव, सुहास नार्वेकर समेत बड़ी संख्या में वीर सावरकर अनुयायी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम का सूत्र संचालन विनीत देव ने किया।
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