Himachal Pradesh: शिमला की इन सात झीलों का होगा सीमाकंन, ये हैं कारण

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Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद(Science, Technology and Environment Council) और जिला वेटलैंड प्राधिकरण(District Wetland Authority) की जिला स्तरीय एक दिवसीय कार्यशाला(One day workshop) 4 मार्च को शिमला(Shimla) में उपायुक्त अनुपम कश्यप(Deputy Commissioner Anupam Kashyap) की अध्यक्षता में आयोजित की गई।

उपायुक्त ने बताया कि जिला शिमला की तानी जुब्बड़ झील और चंद्र नाहन झील का सीमाकंन कार्य पूरा किया जाना है। इसके अतिरिक्त जिला में बराड़ा झील, कनासर झील और धार रूपिन की पांच झीलों का सीमांकन किया जाना है, जिसके लिए उपायुक्त ने निर्देश दिए है कि इन सात झीलों का भी सीमांकन किया जाए ताकि भविष्य में बेहतर नीति का निर्माण करके इन वेटलैंड का संरक्षण किया जा सके।

उपमंडलाधिकारी और डीएफओ को निर्देश जारी
इसके लिए संबंधित उपमंडलाधिकारी (ना०) और डीएफओ को निर्देश जारी कर दिए गए हैं कि मौके पर जाकर सीमा निर्धारित करने का कार्य पूरा करें। उन्होंने कहा कि जिला में वेटलैंड और अन्य ऐतिहासिक तालाबों के संरक्षण के लिए भरसक प्रयास किए जा रहें है। मनरेगा के तहत हर पंचायत में तालाबों के निर्माण के आदेश दिए गए हैं। इन तालाबों के निर्माण में सीमेंट का इस्तेमाल कम से कम करना है ताकि प्राकृतिक तौर पर इन तालाबों का जीर्णोद्धार किया जा सके। इसके अलावा, प्राकृतिक झालों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों के सहयोग से नियम बनाकर लागू करने की दिशा में कार्य किया जाएगा ताकि प्रकृति से किसी तरह की छेड़छाड़ न हो।

वेट लैंड के लाभ
इस कार्यशाला में रवि शर्मा, वैज्ञानिक अधिकारी हिमकोस्टे, ने कार्यशाला के लक्ष्य और उदेश्यों के बारे में विस्तृत जानकारी रखी। उन्होंने कहा कि आर्द्रभूमि परिदृश्य में महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जो लोगों, वन्यजीवों और जलीय प्रजातियों के लिए कई लाभकारी सेवाएं प्रदान करती हैं। इनमें से कुछ सेवाओं या कार्यों में जल की गुणवत्ता की रक्षा और सुधार, मछलियों और वन्यजीवों के लिए आवास उपलब्ध कराना, बाढ़ के पानी का भंडारण करना और शुष्क अवधि के दौरान सतही जल प्रवाह को बनाए रखना शामिल है।

यह मूल्यवान कार्य आर्द्रभूमि की अनूठी प्राकृतिक विशेष
 आर्द्रभूमि दुनिया के सबसे उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्रों में से हैं, जिनकी तुलना वर्षा, वनों और प्रवाल भित्तियों से की जा सकती है। सूक्ष्मजीवों, पौधों, कीड़ों, उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों, मछलियों और स्तनधारियों की प्रजातियों की एक विशाल विविधता आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हो सकती है। जलवायु, परिदृश्य आकार (स्थलाकृति), भूगर्भ विज्ञान और पानी की गति तथा प्रचुरता प्रत्येक आर्द्रभूमि में रहने वाले पौधों और जानवरों को निर्धारित करने में मदद करती है। आर्द्रभूमि पर्यावरण में रहने वाले जीवों के बीच जटिल, गतिशील संबंधों को खाद्य जाल कहा जाता है। आर्द्रभूमि को जैविक सुपरमार्केट के रूप में माना जा सकता है। आर्द्रभूमि का संरक्षण बेहद जरूरी है।

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कार्यशाला में सलाहकार फॉरेस्ट्री एंड बायोडायवर्सिटी जीआईजेड के कुणाल भरत ने विस्तृत रूप से वेटलैंड को लेकर सरकार के आदेशों व नियमों के बारे में जानकारी रखी। वहीं हिमकोस्टे के वरिष्ठ वैज्ञानिक रिशव राना ने धरातल पर वेटलैंड की सीमाएं निर्धारित करने को लेकर जानकारी साझा की

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