छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना आराध्य देव मानते थे वीर सावरकर। जबकि, छत्रपति शिवाजी महाराज के शिव चरित्र को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया शिव शाहीर बाबासाहेब पुरंदरे ने। भारतीय स्वतंत्रता इतिहास के ज्योतिपुंज स्वातंत्र्यवीर सावरकर के स्मारक में गुरुवार को शिव शाहीर की अस्थियां लाई गई थीं।
श्री शिव प्रतिष्ठान द्वारा पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे की अस्थियों को छत्रपति शिवाजी महाराज के किले और राज्य ऐतिहासिक स्थानों पर ले जाया जा रहा है। इसका उद्देश्य है कि जिन बाबासाहेब पुरंदरे ने जीवन भर शिव चरित्र का प्रचार प्रसार किया, उनके ये अंश अब लोगों को प्रेरणा दे सकें, यह अपने इतिहास पुरुषों की महत्ता के प्रति सच्ची श्रद्धा है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक में अस्थियों को वीर सावरकर की मूर्ति के समक्ष रखा गया था।
एक शिव उपासक तो दूसरा शिव चरित्र प्रचारक
स्वातंत्र्यवीर सावरकर सदा ही छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना आराध्य मानते थे। उसी भक्ति के अधीन उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए एक आरती और एक गीत की रचना की थी। इसी प्रकार बाबासाहेब पुरंदरे का जीवन भी छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति समर्पित था, लेकिन इसकी प्रेरणा उन्हें वीर सावरकर से मिली थी। इस बात को किसी और ने नहीं बल्कि बाबासाहेब पुरंदरे ने ही बताया था। उस प्रेरणा को आत्मसात करके बाबासाहेब ने शिव चरित्र को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य शुरू किया। जाणता राजा जैसे नाटकों का लेखन और मंचन किया। छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना सबकुछ माननेवाले मानबिंदु वीर सावरकर के स्मारक में बाबासाहेब पुरंदरे के प्रतीक का आगमन एक इतिहास ही है, जो हिंदुत्व की अलख को जगाए रखनेवालों के लिए एक दिशादर्शक होगा।