पहाड़ की चोटी में गुफा के अंदर विराजमान भोले बाबा के दर्शन को उमड़े शिवभक्त, ये है मान्यता

सावन मास में शिवभक्ति का खास महत्व है। सभी शिव मंदिरों में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं।

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श्रावण मास के पहले 18 जुलाई को बांदा में बांबेश्वर पर्वत की चोटी पर गुफा के अंदर विराजमान शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए तड़के चार बजे से ही बम बम भोले, हर-हर महादेव और जय-जय शिव शंकर जैसे जयकारों की गुंजायमान हो गये। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने मंदिरो में शिवलिंग का जलाभिषेक किया।

श्रीबामदेवेश्वर मंदिर में सावन के इस पवित्र मास में पहले 18 जुलाई को ज्यादा से ज्यादा भक्त जल्द से जल्द अपने ईष्टदेव का जलाभिषेक और पूजा अर्चना करने को लेकर आतुर नजर आये और इसी कारण मंदिरों के बाहर लंबी लंबी कतारें देखी गयीं। ऐसी किवदंती है कि महर्षि बामदेव की तपस्या से बांबेश्वर पहाड़ पर शिवलिंग की स्थापना हुई थी।

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अपर एसपी लक्ष्मी निवास मिश्र ने बताया कि जिले के सभी शिव मंदिरों में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। इन मंदिरों में तड़के 3 बजे से ही दो प्लाटून पीएसी और अन्य सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया गया था।

बामदेव की तपस्या से शिवलिंग की हुई थी स्थापना
ऐसी किवदंती है कि महर्षि बामदेव की तपस्या से बांबेश्वर पहाड़ पर शिवलिंग की स्थापना हुई थी। यह मंदिर रामायण कालीन माना जाता है। सावन मास में शिवभक्ति का खास महत्व है। इस माह में जो भी भगवान शिव की अराधना करते हैं उन्हें हजार गुना फल अधिक मिलता है। महर्षि बामदेव की नगरी में विराजमान श्रीबामदेवेश्वर बहुत ही प्राचीन स्थान हैं। इसका उल्लेख रामायण काल में भी बताया जा रहा है। गुफा के अंदर विराजमान शिवलिंग की पूजा-अर्चना के लिए यूं तो प्रतिदिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन सावन मास में श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ जाती है। 18 जुलाई के दिन लोग तड़के से ही प्रभु के दर्शन व पूजा अर्चना के लिए मंदिर में पहुंच जाते हैं और भीड़ इस कदर हो जाती है कि पंक्ति में खड़े होकर दर्शन के लिए पहुंचना पड़ता है।

प्रति वर्ष एक जौ के बराबर ऊंची होती है गुफा
मंदिर के पुजारी महाराज पुत्तन तिवारी बताते हैं कि महर्षि बामदेव का तपस्या स्थल बांबेश्वर पर्वत था। महर्षि की तपस्या से गुफा के अंदर शिवलिंग स्थापित हुए। पहले यह गुफा इतनी नीची थी और लोगों को लेटकर दर्शन के लिए जाना पड़ता था। लेकिन धीरे-धीरे कर गुफा ऊंची होती चली गई और अब लोग दर्शन के लिए खड़े होकर प्रवेश कर जाते हैं। पुजारी जी कहते हैं कि प्रतिवर्ष एक जौ के बराबर गुफा की ऊंची होने की किवदंती है। प्रभु के दरबार में जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से आता है, प्रभु उसकी जरूर सुनते हैं और मनोकामना पूरी होती हैं।

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