पंजाब चुनावों में अभी समय है लेकिन, खालिस्तानी आतंकियों ने अभी से इसमें षड्यंत्र रचने की घोषणा कर दी है। सिख फॉर जस्टिस की ओर से जिस पंजाब बंद की घोषणा की गई थी वो पूरी तरह से असफल हुई। एसएफजे लंबे काल से भारत विरोधी गतिविधियों की बांक देता रहा है। परंतु, तालिबानियों की हिंसा में मारे जा रहे सिखों और अपमानित हो रहे सिख प्रतीकों पर वे चुप्पी साधे बैठे रहे।
पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे दिलावर सिंह की 26वीं बरसी पर सिख फॉर जस्टिस के काउंसिल गुरपतवंत सिंह पन्नू के देशद्रोही जहर घोलने का कार्यक्रम लगातार शुरू रहा। इस बार फिर दिलावर सिंह की बरसी के दिन अकाल तख्त साहिब में अरदास और राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया गया था। परंतु, श्री अकाल तख्त साहिब में सामान्य तौर पर होनेवाली अरदास तो हुई लेकिन, आतंकी पन्नू के आह्वान को पंजाब ने पूरी तरह से ठुकरा दिया।
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अब निशाने पर चुनाव
पंजाब में 2022 में चुनाव होने हैं। इसमें खालिस्तानी जहर घोलने का अवसर तलाशने का कार्य सिख फॉर जस्टिस का आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू कर रहा है। उसने वीडियो, पोस्टर और वेबसाइट के माध्यम से पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा खालिस्तानियों पर कार्रवाई के आदेशों को नरसंहार करार दिया है। उसने अपने वीडियो में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के कार्यकाल को नरसंहार काल बताते हुए उनके हत्यारे दिलावर सिंह को हीरो बताया है।
पन्नू ने वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यकाल की तुलना बेअंत सिंह के कार्यकाल से की है। वो दावा करता है,
1995 में भाई दिलावर सिंह ने बम का उपयोग कर बेअंत सिंह को रोका था
2022 में एसएफजे बैलट का उपयोग कर कैप्टन अमरिंदर सिंह को रोकेगा
ये है पाकिस्तान परस्ती
सिख फॉर जस्टिस समेत दर्जनों ऐसी संस्थाएं हैं जो पाकिस्तान, अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा आदि देशों में बैठकर भारत विरोधी षड्यंत्र रच रहे हैं। ये सभी भारत के खुशहाल सिखों को भड़काने का सदा प्रयत्न करते रहते हैं, फिर माध्यम चाहे किसान यूनियन आंदोलन हो, शाहीन बाग के माध्यम से ‘के2’ (कश्मीर-खालिस्तान) हो या वैश्विक स्तर पर सिखों को भ्रमित करनेवाला जनमंत संग्रह ही हो। लेकिन अफगानिस्तान के तालिबानियों के आगे इनकी बोलती बंद थी। जब सिखों को बचाकर, पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को सेना के विशेष विमान से भारत सरकार ने वापस लाया तो ये छुपे बैठे थे। इसे इनकी पाकिस्तान परस्ती नहीं तो और क्या कहें?