हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए भांग की खेती को वैध करने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार पॉलिसी बनाने का खाका तैयार कर रही है। पहाड़ी राज्य हिमाचल में भांग की खेती को वैध करने की मांग लंबे अरसे से उठती रही है। विपक्ष में रहते कांग्रेस के कुछ विधायकों ने यह मसला हिमाचल विधानसभा में भी उठाया था। इसे लेकर प्रदेश हाई कोर्ट में भी पीआईएल भी दाखिल की गई थी। अब सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार ने भांग की खेती को वैध बनाने का दावा किया है।
हिमाचल सरकार में मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) व कुल्लू के विधायक सुन्दर सिंह ठाकुर ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में भी भांग की खेती के लिए नीति बनाने की बात कही है।
पूर्व सरकार की आलोचना
सुन्दर सिंह ठाकुर ने 31 जनवरी को पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत करते हुए कहा कि भांग की खेती को वैध करने के लिए पॉलिसी बनाने के हाईकोर्ट दो बार पूर्व सरकार को अंतरिम आदेश दे चुकी है, लेकिन पूर्व सरकार ने इसमें कोई काम नहीं किया। उन्होंने कहा कि भांग का प्रयोग कई तरह की दवाइयों, कपड़ों, जैकेट, रेशा इत्यादि को बनाने के लिए किया जा सकता है। कैंसर, ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी की दवाईयां भाग से बनती है। भांग के पौधे से नशे का एलिमेंट निकाल कर इसे औषधीय, हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट के उत्पादों को बनाया जा सकता है। भांग की खेती से लोगों की आय के साधन भी बनेंगे वहीं औषधीय प्रयोग में भी लाया जा सकेगा। इजराइल ने भांग की औषधीय गुणों को साबित करते हुए कोविड की दवाईयां भी भांग से बनाई है ।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हिमाचल सरकार इसके लिए पॉलिसी लेकर आएगी और अन्य राज्यों की तर्ज पर हिमाचल में भी भांग की खेती को वैध किया जाएगा।
उत्तराखंड में वैध
बता दें कि पड़ोसी राज्य उतराखण्ड साल 2017 में भांग की खेती को वैध कर चुका है। हिमाचल में अगर भांग की खेती की अनुमति मिलती है, तो राज्य सरकार इससे सालाना 18 हज़ार करोड़ रुपये कमा सकती है। इससे 75 हज़ार करोड़ के कर्ज़ में डूबी राज्य सरकार को बड़ी राहत मिलेगी।
हर साल 960 करोड़ रुपये मूल्य की चरस की तस्करी
जानकारी अनुसार इस समय हिमाचल प्रदेश में अनुमानित 2,400 एकड़ में भांग की अवैध खेती हो रही है। इसके जरिये हर साल 960 करोड़ रुपये मूल्य की चरस की तस्करी की जाती है और इसे पश्चिमी यूरोपीय और स्कैंडिनेवियाई देशों में भेजा जाता है। शिमला, चंबा और सिरमौर जिलों में उगाई जाने वाली निम्न गुणवत्ता वाली अवैध चरस का उत्पादन होता है।