सर्वोच्च न्यायालय ने छात्राओं व कामकाजी महिलाओं के लिए माहवारी की छुट्टी (पेड पीरियड लीव) देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ये नीतिगत मामला है, हम इसमें दखल नहीं देंगे। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सरकार के पास अपनी मांग के साथ ज्ञापन देने की अनुमति दे दी।
वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दायर की थी याचिका
वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दायर याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक शोध का हवाला दिया है, जिसके मुताबिक माहवारी के दौरान एक महिला को जितना दर्द होता है, उतना ही दर्द एक व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने पर होता है। याचिका में कहा गया था कि इस तरह का दर्द एक कर्मचारी की उत्पादकता को कम करता है, जिससे उनका काम भी प्रभावित होता है।
याचिका में क्या है?
याचिका में कहा गया था कि कुछ भारतीय कंपनियां जैसे कि इविपनन, ज़ोमैटो, बायजू, स्विगी, मातृभूमि, मैग्टर, इंडस्ट्रीज़, एआरसी, फ्लाईमाईबिज और गूजूप पेड पीरियड लीव की पेशकश करती हैं। याचिका में कहा गया था कि कुछ राज्यों में पेड पीरियड लीव के साथ अन्य लाभ देने की सुविधा है, लेकिन कुछ राज्यों में महिलाएं अभी भी ऐसे किसी भी लाभ से वंचित हैं। ऐसा करना संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है।