सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जम्मू-कश्मीर परिसीमन मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कानून को चुनौती नहीं दी है। 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्र की मंशा है कि नवगठित केंद्र शासित क्षेत्र में लोकतंत्र बहाल किया जाए। सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने कहा कि आपत्ति दर्ज कराने के लिए पर्याप्त समय दिया गया।
देर से दाखिल करने पर जताई नाराजगी
सर्वोच्च न्यायालय ने 13 मई को जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने केंद्र, जम्मू कश्मीर सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने देरी से याचिका दाखिल करने पर नाराजगी जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 2020 के नोटिफिकेशन के दो साल बाद आपने चुनौती दी है, अभी तक क्या आप सो रहे थे।
इन याचिकाकर्ताओं ने किया है परिसीमन का विरोध
हाजी अब्दुल गनी खान और डॉ. मोहम्मद अयुब मट्टू ने दायर याचिका में जम्मू और कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा की सीटों के परिसीमन का विरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि परिसीमन आयोग का गठन परिसीमन अधिनियम की धारा 3 के तहत बिना किसी क्षेत्राधिकार और अधिकार के किया गया है। केंद्र सरकार की ओर से परिसीमन आयोग का गठन करना निर्वाचन आयोग के क्षेत्राधिकार में दखल देना है। जम्मू और कश्मीर में सीटों की बढ़ोतरी संविधान संशोधन कर के ही की जा सकती है क्योंकि संविधान के मुताबिक अगला परिसीमन 2026 में होना चाहिए।
याचिका में है क्या?
याचिका में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर में विधानसभा की सीटें 107 से बढ़ाकर 114 करना जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 और संविधान के अनुच्छेद 81,82, 170 और 330 का उल्लंघन है। बता दें कि जम्मू और कश्मीर की प्रस्तावित 114 सीटों में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की 24 सीटें भी हैं।
यह है पूरा मामला
केंद्र सरकार ने 6 मार्च 2020 को नोटिफिकेशन जारी कर जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में जम्मू और कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड की विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन किया था। इस आयोग का कार्यकाल एक साल के लिए था। बाद में 3 मार्च 2021 को एक और नोटिफिकेशन जारी कर परिसीमन आयोग का कार्यकाल एक साल के लिए और बढ़ा दिया था। कार्यकाल बढ़ाते समय परिसीमन आयोग का क्षेत्राधिकार केवल जम्मू और कश्मीर के लिए ही रखा गया।