सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावों में धांधली को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा कि बूथ कैप्चरिंग या बोगस मतदान की किसी भी तरह की कोशिश से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि इस तरह की इस तरह का कोई भी प्रयास कानून और लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रभावित करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 23 जुलाई को झारखंड में एक मतदान केंद्र पर दंगा करने के लिए दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए इस तरह की टिप्पणी की।
मतदान की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की बेंच ने अपने पहले के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि मतदान की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। बेंच ने कहा कि मतदान प्रणाली का सार मतदाताओं को अपनी पसंद का प्रयोग करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित किया जाना है। इसलिए बूथ कैप्चरिंग या फर्जी मतदान के किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
मतदान की गोपनीयता बनाए रखना जरुरी
न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए मतदान की गोपनीयता बनाए रखना जरुरी है। बेंच ने कहा कि लोकतंत्र में जहां प्रत्यक्ष चुनाव होते हैं, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मतदाता बिना किसी डर के अपना वोट डाले और अपने वोट का खुलासा होने पर पीड़ित हो। बेंच ने कहा कि लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है। चुनाव एक ऐसा तंत्र है, जो लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। किसी को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के अधिकार को खोखला करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।
दायर अपील खारिज
इसी टिप्पणी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने लक्ष्मण सिंह द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसे भारतीय दंड संहिता की धारा 323 यानी स्वैच्छिक चोट पहुंचाना और 147 यानी दंगा के तहत दोषी ठहराया गया था। न्यायालय ने कहा कि चूंकि राज्य ने सिंह को दी गई छह महीने के कैद के खिलाफ अपील को प्राथमिकता नहीं दी, इसलिए यह मामला वहीं टिक हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विधानसभा के एक सदस्य द्वारा बल प्रयोग भी दंगे जैसा है।