सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ बयान देने वाला जिस भी धर्म का हो, उस पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया है कि ऐसे बयानों पर पुलिस खुद संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्ज करे। कोर्ट ने कहा कि भड़काऊ बयान या भाषणों पर बिना किसी शिकायत का इंतजार किए कार्रवाई करें।
कोर्ट ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया कि वे अपने राज्यों में भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ की गई कार्रवाई के संबंध में एक्शन टेकन रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्रवाई में कोताही को कोर्ट की अवमानना माना जाएगा। कोताही करनेवाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने तीनों राज्यों को निर्देश दिया कि वे अपने अधीनस्थ अधिकारियों को कार्रवाई के लिए दिशा-निर्देश जारी करें।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि भाजपा नेता प्रवेश वर्मा ने भड़काऊ भाषण देते हुए एक समुदाय विशेष के आर्थिक बहिष्कार की बात की। उनके खिलाफ कई शिकायतें की जा चुकी हैं, लेकिन कोर्ट और प्रशासन स्टेटस रिपोर्ट मांगने के सिवाय कुछ नहीं करता।
हेट स्पीच पर सर्वोच्च सख्ती
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि धारा 51ए वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की बात करता है लेकिन आज हम धर्म के नाम पर कहां पहुंच गए हैं। जस्टिस हृषिकेश राय ने याचिका में उद्धृत बयानों पर गौर करते हुए कहा कि ये बेहद परेशान करनेवाले हैं। उन्होंने कहा कि हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है।
कपिल सिब्बल ने कही थी ये बात
याचिका शाहीन अब्दुल्ला ने दायर की है। 20 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि ऐसे मामलों में कुछ करने की जरूरत है। अगर अदालतें कुछ नहीं करेंगी तो भगवान ही इस देश को बचा सकता है। उन नेताओं के खिलाफ कुछ किया जाना चाहिए। तब जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और देश को हल्के में ना लें।